अमर सिंह हमेशा अमर रहेंगे – डिजायर न्यूज

अमर सिंह हमेशा अमर रहेंगे – डिजायर न्यूज

डिजायर न्यूज, नई दिल्ली – 1 अगस्त 2020 को भारतीय राजनीति के दिग्गज नेता अलविदा कह कर इस दुनिया से चले गए थे, आज उन्हे 2 साल हो गए है, डिजायर ग्रुप पर हमेशा अपना आशीर्वाद रखने वाले अमर सिंह जी के जीवन से जुडी कुछ बातें आज हम आप को बताएंगे, क्या जादू था उनमें जो हर पार्टी में उनकी पकड़ ही नहीं मजबूत पकड़ थी। एक समय पर समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव के दाहिने हाथ माने जाने वाले, उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता अमर सिंह का निधन हो गया। उत्तर प्रदेश की राजनीति में अमर सिंह अपने शायराना अंदाज से एक अलग ही पहचान रखते थे। उद्योगपति से राजनेता बने, अमर सिंह समाजवादी पार्टी के महासचिव भी रहे। आइए जानते हैं उनकी जिंदगी का सफरनामा।
मूल रूप से आजमगढ़ के कारोबारी परिवार में जन्में अमर सिंह का बचपन और युवावस्था के दिन कोलकाता में बीते थे। जहां वे बिड़ला परिवार के संपर्क में आए और केके बिरला का भरोसा हासिल करने के बाद दिल्ली पहुंच गए। बिड़ला और भरतिया परिवार की नजदीकियों के चलते एक समय में अमर सिंह हिंदुस्तान टाइम्स के निदेशक मंडल में भी रहे।

मुलायम सिंह अमर सिंह पर बहुत भरोसा करते हैं। राजनीति में जिस तरह की जरूरतें रहती हैं, चाहे वो संसाधन जुटाने की बात हो या जोड़ तोड़ यानी नेटवर्किंग का मसला हो, उन सबको देखते हुए वह अमर सिंह को पार्टी के लिए उपयुक्त मानते हैं। इसलिए उन्हें जिम्मेदारी सौंपी थी। ये बात भी अपनी जगह एकदम सही है कि अमर सिंह नेटवर्किंग के बादशाह रहे हैं। अमर सिंह दोस्ती निभाना बहुत अच्छी तरह से जानते थे। वह बताते थे कि किस तरह से मुलायम के साथ मिलकर उन्होंने समाजवादी पार्टी को मुकाम तक पहुंचाया था। अमर सिंह बतौर उद्योगपति खुद ही संबंधों की सूची वक्त-वक्त पर लोगों के बीच रखते रहे हैं। इसमें उन्होंने अनिल अंबानी, सुब्रत राय सहारा का जिक्र भी किया है। खैर, अमर सिंह को अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी का सदस्य भी बनवाया गया था। इसमें सहयोग माधव राव सिंधिया ने किया था।

प्रारंभिक जीवनः अमर सिंह का जन्म 27 जनवरी 1956 को आजम गढ़ हुआ। उनके पिता का नाम हरीश चंद्र सिंह और माता का नाम शैल कुमारी सिंह था। शिक्षाः बी.ए., एलएलबी की डिग्री प्राप्त की और सेंट जेवियर्स कॉलेज, यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लॉ, कोलकाता में आगे की पढ़ाई की।

पारिवारिक पृष्ठभूमिः अमर सिंह ने 1987 में पंकजा कुमारी सिंह से शादी की और 14 साल बाद पिता बने। अप्रैल 2001 में उनकी दो जुड़वा बेटियां हुईं। इन बेटियों के नाम दृष्टि और दिशा है।
2010 में सपा से दिया इस्तीफा छह जनवरी 2010 को उन्होंने समाजवादी पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया और बाद में 2 फरवरी 2010 को पार्टी प्रमुख, मुलायम सिंह यादव द्वारा उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। उन्होंने 2011 में न्यायिक हिरासत में एक संक्षिप्त अवधि बिताई। अंततः अमर सिंह ने राजनीति से संन्यास ले लिया। मगर 2016 में उनकी सपा में वापसी हुई और एक बार फिर राज्य सभा सदस्य के रूप में संसद पहुंचे।

राजनीतिक सफर
नवंबर 1996 में वे समाजवादी पार्टी के समर्थन से पहली बार राज्य सभा के सदस्य चुने गए। वह 2002 और 2008 में भी राज्य सभा के लिए चुने गए।
छह जनवरी 2010 को उन्होंने समाजवादी पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। अमर सिंह ने 2011 में राष्ट्रीय लोक मंच के नाम से अपनी पार्टी बनाई ।
2012 के विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश की 403 सीटों में से 360 पर अपने उम्मीदवार खड़े किए। मार्च 2014 में राष्ट्रीय लोकदल पार्टी में शामिल हो गए, फतेहपुर सीकरी से लोकसभा चुनाव लड़े और हार गए। 2016 में सपा में वापसी हुई और एक बार फिर राज्य सभा सदस्य के रूप में संसद पहुंचे।

 

 

 

विवादों से रहा नाता 

2008 में मनमोहन सरकार द्वारा विश्वास मत हासिल करने की बहस के दौरान भाजपा के सांसदों ने आरोप लगाया कि मनमोहन सरकार ने अमर सिंह के माध्यम से उनके वोट खरीदने की कोशिश की थी। संसद में नोटों की गड्ढी लहराने का मामला भी सामने आया। इस मामले में अमर सिंह को तिहाड़ जेल भी जाना पड़ा। अमर सिंह और बिपाशा बसु का एक कथित ऑडियो टेप भी वायरल हुआ था। जिसके बाद राजनीति से लेकर बॉलीवुड के गलियारों में जमकर हंगामा मचा था।
अमर सिंह का कमाल 
संजय दत्त और जया प्रदा को समाजवादी पार्टी में लाने का श्रेय अमर सिंह को ही जाता है। उत्तर प्रदेश के लिए शीर्ष कारोबारियों को एक मंच पर लाना हो, या फिर समाजवादी पार्टी को चमक दमक वाली राजनीतिक पार्टी के रूप में पेश करना, ये सब अमर सिंह का ही कमाल था।
लुटियंस दिल्ली की राजनीति में राजनीतिक जोड़तोड़ का चर्चित चेहरा
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में जन्मे सिंह ने कोलकाता में कांग्रेस के छात्र परिषद के युवा सदस्य के रूप में अपने सफर की शुरूआत की, जहां उनके परिवार का कारोबार था। फिर वह लुटियंस दिल्ली की राजनीति में राजनीतिक प्रबंधन का चर्चित चेहरा बन गये। समझा जाता है कि उन्होंने न्च्।-1 सरकार को 2008 में लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान समाजवादी पार्टी (एसपी) का समर्थन दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। दरअसल, भारत-अमेरिका परमाणु समझौता को लेकर वाम दलों ने मनमोहन सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। उस वक्त एसपी के समर्थन से ही यूपीए सरकार सत्ता में बनी रह पाई थी। उस वक्त एसपी के तत्कालीन अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव कांग्रेस से अपने दशक भर पुराने राग-द्वेष को भुलाने के लिए मान गए, जिसका श्रेय अमर सिंह को ही जाता है।

उद्योग जगत से बॉलिवुड तक संपर्क
उद्योग जगत में उनके संपर्क की बदौलत सपा को अच्छी खासी कॉरपोरेट आर्थिक मदद मिलती थी और एक समय में पार्टी में मुलायम सिंह के बाद वह दूसरे नंबर पर नजर आने लगे थे। मुलायम के जन्म स्थान पर मनाये जाने वाला वार्षिक सैफई महोत्सव राष्ट्रीय सुर्खियों में रहने लगा क्योंकि समाजवादी पार्टी के अच्छे दिनों में वहां बॉलीवुड के कई सितारे कार्यक्रम पेश करने आया करते थे। संजय दत्त, जया बच्चन और जया प्रदा को समाजवादी पार्टी में लेकर आये। बॉलीवुड में अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, अक्षय कुमार, श्री देवी, बोनी कपूर कोई ऐसा फिल्मस्टार नहीं था जो उनका दीवाना ना हो।

 

 

 

 

अमर सिंह ने बचाई थी कांग्रेस की गिरती सरकार
कांग्रेसी नेताओं के साथ रहते हुए समाजवादी पार्टी के करीब आए, कोलकाता के बड़ा बाजार में कारोबार से अपने परिवार की मदद करने के दौरान ही वह कांग्रेस के संपर्क में आये थे और छात्र परिषद के युवा सदस्य बने थे। छात्र परिषद बंगाल में कांग्रेस की छात्र शाखा है। वीर बहादुर सिंह सहित कांग्रेस के कई नेताओं के करीब रहने के बाद अमर सिंह मंडल राजनीति के दौरान समाजवादी नेताओं के संपर्क में आये। उस वक्त मुलायम सिंह राष्ट्रीय राजनीति में अपना पैर जमाने की कोशिश कर रहे थे। तभी उन्होंने अमर सिंह को पाया, जिन्होंने उन्हें सत्ता के गलियारों में मदद की। यह अमर सिंह के लिये एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जो मुलायम की मदद करने में अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर रहे थे और उनका विश्वास हासिल करते जा रहे थे। बेनी प्रसाद वर्मा, मोहन सिंह और राम गोपाल यादव सहित सपा के कई नेताओं के विरोध के बावजूद अमर सिंह, मुलायम के करीबी बने रहे।
बच्चन से लेकर अंबानी तक, सबसे थे इनके रिश्ते
एक समय तो अमर, मुलायम के बेटे अखिलेश यादव के करीबी माने जाने लगे थे। हालांकि बाद में उनकी दूरी बढ़ गयी। एसपी जब 2003 में उत्तर प्रदेश में सत्ता में आई तब अमर सिंह ने उत्तर प्रदेश सरकार की उद्योगपतियों और बॉलीवुड की हस्तियों के साथ कई बैठकें आयोजित कराई। उनमें से कुछ उद्योपतियों ने राज्य में निवेश भी किया। कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव को भी अमर सिंह की उतनी ही जरूरत थी जितनी अमर सिंह को उनकी थी। बाद में अमर सिंह को 2016 में राज्यसभा भेजा गया। अमर सिंह ने 1996 से लेकर 2010 तक सपा में अपने पहले कालखंड में पार्टी के लिए कड़ी मेहनत की और उन्हें अक्सर अमिताभ बच्चन के परिवार से लेकर अनिल अंबानी और सुब्रत रॉय जैसी हस्तियों के साथ देखा जाता था। उन्हें उद्योगपति अनिल अंबानी को 2004 में निर्दलीय सदस्य के तौर पर राज्यसभा भेजने के सपा के फैसले का सूत्रधार भी माना जाता है। हालांकि अंबानी ने बाद में 2006 में इस्तीफा दे दिया।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से भी संबंध
कहा जाता है कि अमर सिंह ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की 2005 में क्लिंटन फाउंडेशन के जरिए लखनऊ की यात्रा आयोजित कराई थी। उस वक्त मुलायम सिंह राज्य के मुख्यमंत्री थे। क्लिंटन फाउंडेशन को अमर सिंह के कथित तौर पर भारी मात्रा में धन दान करने को लेकर भी विवाद है। लेकिन अमर सिंह ने इससे इनकार किया था। 2015 में एक अमेरिकी लेखक की किताब में दावा किया गया था कि अमर सिंह ने 2008 में क्लिंटन फाउंडेशन को दस लाख डॉलर से 50 लाख डॉलर के बीच का चंदा दिया था। लेखक ने किताब में परमाणु करार के संदर्भ में अन्य आरोप भी लगाये थे जिन्हें अमर सिंह ने खारिज कर दिया था।

समाजवादी पार्टी से निकाले गए
अमर सिंह को 2010 में सपा से निकाल दिया गया और बाद में उनका नाम ‘नोट के बदले वोट‘ के कथित घोटाले में आया और 2011 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि, समाजवादी पार्टी में प्रमुख चेहरे के तौर पर अखिलेश यादव के उभरने और उनके वयोवृद्ध पिता मुलायम सिंह का नियंत्रण कम होने के बाद पार्टी में अमर सिंह का दबदबा भी कम होने लगा। एसपी के वरिष्ठ नेताओं के दबाव और मुलायम के साथ मतभेद बढ़ने पर अमर सिंह ने पार्टी के विभिन्न पदों से इस्तीफा दे दिया था। उन्हें 2010 में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। इसके साथ सपा नेता के साथ करीब दो दशक पुराना उनका संबंध खत्म हो गया।
पैतृक संपत्ति को संघ को दान किया
इसके बाद वह दौर आया, जब अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता के लिए मशक्कत कर रहे अमर सिंह कुछ साल बाद फिर मुलायम सिंह के करीब आ गए। लेकिन दूसरी बार सपा में लौटे सिंह को पार्टी में अखिलेश यादव का वर्चस्व होने के बाद 2017 में पुनः बर्खास्त कर दिया गया। इसके बाद उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीब आते देखा गया। उन्होंने आजमगढ़ में अपनी पैतृक संपत्ति को संघ को दान करने की भी घोषणा की।
बच्चन परिवार से मांगी माफी
दिल्ली में लोधी एस्टेट स्थित अपने आधिकारिक आवास के बाहर वह अक्सर ही मीडिया से मुखातिब होते थे। प्रतिद्वंद्वियों पर अपने खास अंदाज में वह हमला बोला करते थे। कुछेक बार उन्होंने मुलामय और बच्चन परिवार को भी नहीं बख्शा। अमिताभ बच्चन के परिवार के साथ भी उनका बहुत घनिष्ठ संबंध था। हालांकि बाद में उनके रिश्तों में दरार आती देखी गयी। हालांकि, अमर सिंह ने फरवरी में अमिताभ बच्चन के खिलाफ अपनी टिप्पणियों पर खेद प्रकट किया था। उन्होंने ट्विटर पर लिखा था, ‘आज मेरे पिता की पुण्यतिथि है और मुझे सीनियर बच्चन जी से इस बारे में संदेश मिला है। जीवन के इस पड़ाव पर जब मैं जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहा हूं, मैं अमित जी और उनके परिवार के लिए मेरी अत्यधिक प्रतिक्रियाओं पर खेद प्रकट करता हूं। ईश्वर उन सभी का भला करे।
नई पार्टी भी बनाई
अमर सिंह ने 2011 में राष्ट्रीय लोक मंच का गठन किया और 2012 के उप्र विधानसभा चुनाव में पार्टी के उम्मीदवारों के लिये प्रचार किया। अभिनेत्री जया प्रदा भी उम्मीदवार बनाईं गई। लेकिन उनके सारे उम्मीदवार हार गये। इससे पहले, अमर सिंह ही तेलुगू देशम पार्टी की सांसद रहीं जया प्रदा को एसपी में लाये थे और वह रामपुर से पार्टी के टिकट पर दो बार लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुईं। जया प्रदा ने सिंह के प्रति अपनी निष्ठा कायम रखी और उनके साथ ही पार्टी छोड़ दी।

मोदी-बीजेपी की तारीफ में पढ़ें कसीदे
कहा जाता है कि भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में जया प्रदा को अमर सिंह के कहने पर ही रामपुर से टिकट दिया था। हालांकि वह चिर प्रतिद्वंद्वी आजम खान से हार गयीं। अमर सिंह ने 2014 का लोकसभा चुनाव अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल के टिकट पर लड़ा लेकिन हार गये। बाद में सिलसिलेवार मीडिया इंटरव्यू में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सत्तारूढ़ बीजेपी की प्रशंसा की।
माफी, डायलॉग और अलविदा!
अमिताभ बच्चन एंड फैमिली, संजय दत्त, जया प्रदा, शाहरूख खान के साथ अमर सिंह जब भी खड़े नजर आए तो लोगों ने उनकी बॉलिवुड इंडस्ट्री में मजबूत पकड़ को महसूस किया। राजनीति उठापटक के बीच अमर सिंह के अपने करीबियों से रिश्ते बिगड़े भी। उनमें से एक रिश्ता अमिताभ बच्चन ऐंड फैमिली का भी है। हालांकि, अमर ने जाते-जाते उस रिश्ते में पैदा हुई खटास की वजहों के लिए सार्वजनिक रूप से माफी भी मांगी। टाइगर जिंदा है…डायलॉग के साथ राजनीति में खुद की हनक साबित करने वाला वह ‘गेम चेंजर‘ दुनिया को अलविदा कह गया।

जया प्रदा से रिश्ता
करियर की ऊंचाइयों तक पहुंचने के बाद जया प्रदा ने राजनीति की ओर रुख किया था। जया प्रदा 1994 में तेलुगू देशम पार्टी में शामिल हो गईं। साल 2000 में वो तेदेपा छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हुईं। माना जाता है कि जया प्रदा को पार्टी में लाने के पीछे अमर सिंह की बड़ी भूमिका थी। जब अमर सिंह समाजवादी पार्टी से अलग हुए तो जया भी उनके साथ अलग होकर राष्ट्रीय लोकदल पार्टी में शामिल हो गईं और चुनाव हार गईं। अब वह भाजपा में शामिल हो गई हैं और रामपुर लोकसभा सीट से प्रत्याशी रही लेकिन इस बार आजम खान ने उन्हे हरा दिया। जया प्रदा ने हमेशा अमर सिंह को अपना गॉडफादर माना। और हमेशा जैसे अमर सिंह उनके लिए दुनिया से लड़ जाते थे ऐसे ही जया प्रदा ने भी अंतिम पल तक अमर सिंह का साथ नहीं छोड़ा।

संजीव शर्मा
एडिटर इन चीफ
02-08-2022 02:00 PM
Leave A Reply

Your email address will not be published.