उत्तरप्रदेश के पूर्व चीफ मिनिस्टर मुलायम सिंह यादव की तबीयत बिगड़ी,-डिजायर न्यूज, नई दिल्ली

डिजायर न्यूज, नई दिल्ली- उत्तरप्रदेश के पूर्व चीफ मिनिस्टर मुलायम सिंह यादव की तबीयत बिगड़ी, मेदांता के  प्ब्न् में उन्हें शिफ्ट किया गया है, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी उनके जल्दी ठीक होने की दुआ, उत्तरप्रदेश के पूर्व चीफ मिनिस्टर अखिलेश यादव अपने पिता से मिलने अपनी पत्नी डिंपल यादव के साथ मेदांता पहुंचे। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा सरंक्षक मुलायम सिंह यादव की रविवार (2 अक्टूबर, 2022) को अचानक तबीयत बिगड़ गई। इसके चलते उन्हें गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में आईसीयू में भर्ती कराया गया है। डॉक्टर सुशीला कटारिया के देखरेख में उनका इलाज चल रहा है। मुलायम सिंह यादव को हॉस्पिटल में भर्ती कराने के बाद वेंटिलेटर पर शिफ्ट किया गया है। पिछले काफी समय से मुलायम सिंह का स्वास्थ्य खराब चल रहा है।

मुलायम सिंह यादव का व्यक्तिगत जीवन

मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवम्बर 1939 को इटावा जिले के सैफई गाँव में मूर्ति देवी व सुघर सिंह यादव के घर एक किसान परिवार में हुआ। मुलायम सिंह यादव अपने पाँच भाई-बहनों में रतनसिंह यादव से छोटे व अभयराम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव, राजपाल सिंह और कमला देवी से बड़े हैं। प्रोफेसर रामगोपाल यादव इनके चचेरे भाई हैं। पिता सुघर सिंह उन्हें पहलवान बनाना चाहते थे किन्तु पहलवानी में अपने राजनीतिक गुरु चैधरी नत्थूसिंह को मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती-प्रतियोगिता में प्रभावित करने के पश्चात उन्होंने नत्थूसिंह के परम्परागत विधान सभा क्षेत्र जसवन्त नगर से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया। राजनीति में आने से पूर्व मुलायम सिंह यादव आगरा विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर (एम०ए०) और बी० टी० करने के उपरान्त इन्टर कालेज में प्रवक्ता नियुक्त हुए और सक्रिय राजनीति में रहते हुए नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।

मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक जीवन

मुलायम सिंह उत्तर भारत के बड़े समाजवादी और किसान नेता हैं। एक साधारण किसान परिवार में जन्म लेने वाले मुलायम सिंह ने अपना राजनीतिक जीवन उत्तर प्रदेश में विधायक के रूप में शुरू किया। बहुत कम समय में ही मुलायम सिंह का प्रभाव पूरे उत्तर प्रदेश में नजर आने लगा। मुलायम सिंह ने उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग समाज का सामाजिक स्तर को ऊपर करने में महत्वपूर्ण कार्य किया। सामाजिक चेतना के कारण उत्तर प्रदेश की राजनीति में अन्य पिछड़ा वर्ग का महत्वपूर्ण स्थान हैं। समाजवादी नेता रामसेवक यादव के प्रमुख अनुयायी (शिष्य) थे तथा इन्हीं के आशीर्वाद से मुलायम सिंह 1967 में पहली बार विधान सभा के सदस्य चुने गये और मंत्री बने। 1992 में उन्होंने समाजवादी पार्टी बनाई। वे तीन बार क्रमशः 5 दिसम्बर 1989 से 24 जनवरी 1991 तक, 5 दिसम्बर 1993 से 3 जून 1996 तक और 29 अगस्त 2003 से 11 मई 2007 तक उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे। इसके अतिरिक्त वे केन्द्र सरकार में रक्षा मंत्री भी रह चुके हैं। उत्तर प्रदेश में यादव समाज के सबसे बड़े नेता के रूप में मुलायम सिंह की पहचान है। उत्तर प्रदेश में सामाजिक सद्भाव को बनाए रखने में मुलायम सिंह ने साहसिक योगदान किया। मुलायम सिंह की पहचान एक धर्मनिरपेक्ष नेता की है। उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी समाजवादी पार्टी को सबसे बड़ी पार्टी माना जाता है। उत्तर प्रदेश की सियासी दुनिया में मुलायम सिंह यादव को प्यार से नेता जी कहा जाता है।

अखिलेश यादव को बनाया मुख्य मंत्री

2012 में समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में पूर्ण बहुमत मिला। यह पहली बार हुआ था कि उत्तर प्रदेश में सपा अपने बूते सरकार बनाने की स्थिति में थी। नेता जी के पुत्र और सपा के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बसपा की सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुद्दा जोर शोर से उठाया और प्रदेश के सामने विकास का एजेंडा रखा। अखिलेश यादव के विकास के वादों से प्रभावित होकर पूरे प्रदेश में उनको व्यापक जनसमर्थन मिला। चुनाव के बाद नेतृत्व का सवाल उठा तो नेताजी ने वरिष्ठ साथियों के विमर्श के बाद अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया। अखिलेश यादव मुलायम सिंह के पुत्र है। अखिलेश यादव ने नेता जी के बताए गये रास्ते पर चलते हुए उत्तर प्रदेश को विकास के पथ पर आगे बढ़ाया.

समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव पिछले पांच दशक से राजनीति में सक्रिय हैं। अपने राजनीतिक गुरु नत्थूसिंह को मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती प्रतियोगिता में प्रभावित करने के पश्चात मुलायम सिंह ने नत्थूसिंह के परम्परागत विधान सभा क्षेत्र जसवन्त नगर से ही अपना राजनीतिक सफर आरम्भ किया था। मुलायम सिंह यादव जसवंत नगर और फिर इटावा की सहकारी बैंक के निदेशक चुने गए थे। विधायक का चुनाव भी ‘सोशलिस्ट पार्टी‘ और फिर ‘प्रजा सोशलिस्ट पार्टी‘ से लड़ा था। इसमें उन्होंने विजय भी प्राप्त की। उन्होंने स्कूल के अध्यापन कार्य से इस्तीफा दे दिया था। पहली बार मंत्री बनने के लिए मुलायम सिंह यादव को 1977 तक इंतजार करना पड़ा, जब कांग्रेस विरोधी लहर में उत्तर प्रदेश में भी जनता सरकार बनी थी। 1980 में भी कांग्रेस की सरकार में वे राज्य मंत्री रहे और फिर चैधरी चरण सिंह के लोकदल के अध्यक्ष बने और विधान सभा चुनाव हार गए। चैधरी साहब ने विधान परिषद में मनोनीत करवाया, जहाँ वे प्रतिपक्ष के नेता भी रहे।

जब लोक सभा पहुंच मुलायम सिंह यादव

1996 में मुलायम सिंह यादव ग्यारहवीं लोकसभा के लिए मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से चुने गए थे और उस समय जो संयुक्त मोर्चा सरकार बनी थी, उसमें मुलायम सिंह भी शामिल थे और देश के रक्षामंत्री बने थे। यह सरकार बहुत लंबे समय तक चली नहीं। मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने की भी बात चली थी। प्रधानमंत्री पद की दौड़ में वे सबसे आगे खड़े थे, किंतु उनके सजातियों ने उनका साथ नहीं दिया। लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने उनके इस इरादे पर पानी फेर दिया। इसके बाद चुनाव हुए तो मुलायम सिंह संभल से लोकसभा में वापस लौटे। असल में वे कन्नौज भी जीते थे, किंतु वहाँ से उन्होंने अपने बेटे अखिलेश यादव को सांसद बनाया।

केंद्रीय राजनीति में नेता जी

केंद्रीय राजनीति में मुलायम सिंह का प्रवेश 1996 में हुआ, जब काँग्रेस पार्टी को हरा कर संयुक्त मोर्चा ने सरकार बनाई। एच. डी. देवेगौडा के नेतृत्व वाली इस सरकार में वह रक्षामंत्री बनाए गए थे, किंतु यह सरकार भी ज्यादा दिन चल नहीं पाई और तीन साल में भारत को दो प्रधानमंत्री देने के बाद सत्ता से बाहर हो गई। ‘भारतीय जनता पार्टी‘ के साथ उनकी विमुखता से लगता था, वह काँग्रेस के नजदीक होंगे, लेकिन 1999 में उनके समर्थन का आश्वासन ना मिलने पर काँग्रेस सरकार बनाने में असफल रही और दोनों पार्टियों के संबंधों में कड़वाहट पैदा हो गई। 2002 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 391 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए, जबकि 1996 के चुनाव में उसने केवल 281 सीटों पर ही चुनाव लड़ा था।

राजनीतिक दर्शन तथा विदेश यात्रा

मुलायम सिंह यादव की राष्ट्रवाद, लोकतंत्र, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्तों में अटूट आस्था रही है। भारतीय भाषाओं, भारतीय संस्कृति और शोषित पीड़ित वर्गों के हितों के लिए उनका अनवरत संघर्ष जारी रहा है। उन्होंने ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, जर्मनी, स्विटजरलैण्ड, पोलैंड और नेपाल आदि देशों की भी यात्राएँ की हैं। लोकसभा सदस्य कहा जाता है कि मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश की किसी भी जनसभा में कम से कम पचास लोगों को नाम लेकर मंच पर बुला सकते हैं। समाजवाद के फ्रांसीसी पुरोधा ‘कॉम डी सिमॉन‘ की अभिजात्यवर्गीय पृष्ठभूमि के विपरीत उनका भारतीय संस्करण केंद्रीय भारत के कभी निपट गाँव रहे सैंफई के अखाड़े में तैयार हुआ है। वहाँ उन्होंने पहलवानी के साथ ही राजनीति के पैंतरे भी सीखे। लोकसभा से मुलायम सिंह यादव ग्यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं और पंद्रहवीं लोकसभा के सदस्य चुने गये थे।

भाजपा से नजदीकी

मुलायम सिंह यादव मीडिया को कोई भी ऐसा मौका नहीं देते, जिससे कि उनके ऊपर ‘भाजपा‘ के करीबी होने का आरोप लगे। जबकि राजनीतिक हलकों में यह बात मशहूर है कि अटल बिहारी वाजपेयी से उनके व्यक्तिगत रिश्ते बेहद मधुर थे। वर्ष 2003 में उन्होंने भाजपा के अप्रत्यक्ष सहयोग से ही प्रदेश में अपनी सरकार बनाई थी। अब 2012 में उनका आकलन सच भी साबित हुआ। उत्तर प्रदेश में ‘समाजवादी पार्टी‘ को अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल हुई है। 45 मुस्लिम विधायक उनके दल में हैं। हाल में भी भारत के प्रधानमंत्री नरेंदर मोदी से भी उनका रिश्ता किसी से छुपा हुआ नहीं है। उनकी तबियत को लेकर प्रधानमंत्री के उनके बेटे अखिलेश यादव से बात की।  रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने भी उनके जल्दी स्वस्थ होने की कामना की है।

मुलायम सिंह यादव को पुरस्कार व सम्मान

पूर्व मुख्यमंत्री एवं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को 28 मई, 2012 को लंदन में ‘अंतर्राष्ट्रीय जूरी पुरस्कार‘ से सम्मानित किया गया। इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ जूरिस्ट की जारी विज्ञप्ति में हाईकोर्ट ऑफ लंदन के सेवानिवृत न्यायाधीश सर गाविन लाइटमैन ने बताया कि श्री यादव का इस पुरस्कार के लिये चयन बार और पीठ की प्रगति में बेझिझक योगदान देना है। उन्होंने कहा कि श्री यादव का विधि एवं न्याय क्षेत्र से जुड़े लोगों में भाईचारा पैदा करने में सहयोग दुनियाभर में लाजवाब है। ज्ञातव्य है कि मुलायम सिंह यादव ने विधि क्षेत्र में खासा योगदान दिया है। समाज में भाईचारे की भावना पैदा कर मुलायम सिंह यादव का लोगों को न्याय दिलाने में विशेष योगदान है। उन्होंने कई विधि विश्वविद्यालयों में भी महत्त्वपूर्ण योगदान किया है।

 

 

 

 

 

 

मुलायम सिंह पर पुस्तकें

उत्तरप्रदेश के साथ साथ राजनीति में भी मुलायम सिंह यादव का कद बहुत बड़ा है इसके चलते मुलायम सिंह पर कई पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं। इनमे पहला नाम ‘‘मुलायम सिंह यादव- चिन्तन और विचार‘‘ का है जिसे अशोक कुमार शर्मा ने सम्पादित किया था। इसके अतिरिक्त राम सिंह तथा अंशुमान यादव द्वारा लिखी गयी ‘‘मुलायम सिंहः ए पोलिटिकल बायोग्राफी‘‘ अब उनकी प्रमाणिक जीवनी है। लखनऊ की पत्रकार डॉ नूतन ठाकुर ने भी मुलायम सिंह के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक महत्व को रेखांकित करते हुए एक पुस्तक लिखने का कार्य किया है।
28 की उम्र में बने विधायक
राम मनोहर लोहिया और राज नरायण जैसे समाजवादी विचारधारा के नेताओं की छत्रछाया में राजनीति का ककहरा सीखने वाले मुलायम 28 साल की उम्र में पहली बार विधायक बने। जबकि उनके परिवार का कोई सियासी बैकग्राउंड नहीं था। ऐसे में मुलायम के सियासी सफर में 1967 का साल ऐतिहासिक रहा जब वो पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। मुलायम संघट सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर अपने गृह जनपद इटावा की जसवंतनगर सीट से आरपीआई के उम्मीदवार को हराकर विजयी हुए थे। मुलायम को पहली बार मंत्री बनने के लिए 1977 तक इंतजार करना पड़ा। उस वक्त कांग्रेस विरोधी लहर में उत्तर प्रदेश में भी जनता सरकार बनी थी

50 साल की उम्र में पहली बार बने सीएम
मुलायम सिंह यादव 1980 के आखिर में उत्तर प्रदेश में लोक दल के अध्यक्ष बने थे जो बाद में जनता दल का हिस्सा बन गया। मुलायम 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के सीएम बने। नवंबर 1990 में केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिर गई तो मुलायम सिंह चंद्रशेखर की जनता दल (समाजवादी) में शामिल हो गए और कांग्रेस के समर्थन से सीएम की कुर्सी पर विराजमान रहे। अप्रैल 1991 में कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया तो मुलायम सिंह की सरकार गिर गई। 1991 में यूपी में मध्यावधि चुनाव हुए जिसमें मुलायम सिंह की पार्टी हार गई और बीजेपी सूबे में सत्ता में आई।

1992 में नेताजी ने बनाई अपनी समाजवादी पार्टी

चार अक्टूबर, 1992 को लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाने की घोषणा की। समाजवादी पार्टी की कहानी मुलायम सिंह के सियासी सफर के साथ-साथ चलती रही। मुलायम सिंह यादव ने जब अपनी पार्टी खड़ी की तो उनके पास बड़ा जनाधार नहीं था। नवंबर 1993 में यूपी में विधानसभा के चुनाव होने थे। सपा मुखिया ने बीजेपी को दोबारा सत्ता में आने से रोकने के लिए बहुजन समाज पार्टी से गठजोड़ कर लिया। समाजवादी पार्टी का यह अपना पहला बड़ा प्रयोग था। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद पैदा हुए सियासी माहौल में मुलायम का यह प्रयोग सफल भी रहा। कांग्रेस और जनता दल के समर्थन से मुलायम सिंह फिर सत्ता में आए और सीएम बने।

2012 में बेटे को सत्ता के शीर्ष पर पहुंचाया

2003 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को जीत नसीब हुई। 29 अगस्त 2003 को मुलायम सिंह यादव एक बार फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। यह सरकार चार साल ही रह पाई। 2007 में विधानसभा चुनाव हुए मुलायम सिंह सत्ता से बाहर हो गए। 2009 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की हालत खराब हुई तो मुलायम सिंह ने बड़ा फैसला लिया। राज्य विधानसभा में नेता विपक्ष की कुर्सी पर छोटे भाई शिवपाल यादव को बिठा दिया और खुद दिल्ली की सियासत की कमान संभाल ली। 2012 के चुनाव से पहले नेताजी ने अपने बेटे अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश सपा की कमान सौंपी। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा के पक्ष में अप्रत्याशित नतीजे आए। नेताजी ने बेटे अखिलेश को सूबे के सीएम की कुर्सी सौंप दी और समाजवादी पार्टी में दूसरी पीढ़ी ने दस्तक दी।

देश का सबसे बड़ा सियासी कुनबा

मुलायम सिंह यादव का परिवार देश का सबसे बड़ा सियासी परिवार है। आज की तारीख में इस परिवार के 20 सदस्य समाजवादी पार्टी का हिस्सा हैं। यह पार्टी उसी लोहियाजी के आदर्शों पर चलने का दावा करती है जो नेहरू की परिवारवाद की राजनीति को बढ़ावा देने की आलोचना करते थे। मुलायम सिंह की जिंदगी में कुछ ऐसे पल भी आए जिनसे वो खुद और उनका कुनबा विवादों में रहे।

उत्तराखंड का रामपुर तिराहा कांड का लगा दाग

वो 1990 के दशक के शुरुआती साल थे जब उत्तराखंड की मांग जोर पकड़ रही थी। 2 अक्टूबर 1994 को अलग उत्तराखंड की मांग को लेकर लोग दिल्ली रैली में शिरकत करने जा रहे थे। उत्तर प्रदेश में उस वक्त मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। बताया जाता है कि सीएम मुलायम के आदेश पर इन लोगों को मुजफ्फरनगर के पास रामपुर तिराहे पर घेर लिया गया। इस दौरान पुलिस ने आंदोलनकारियों पर न सिर्फ लाठी-डंडे बरसाए बल्कि फायरिंग भी हुई। इस घटना को रामपुर तिराहा गोलीबारी कांड के नाम से जाना जाता है। इस घटना में 6 लोग मारे गए। कुछ महिलाओं के साथ छेड़खानी और दुष्कर्म के आरोप भी लगे थे। इस घटना के बाद पूरे प्रदेश में मातम और अफरातफरी का माहौल फैल गया। इस घटना के बाद मुलायम सिंह यादव की इमेज एक ‘विलेन‘ जैसी हो गई थी। देहरादून समेत तमाम जगहों पर मुलायम सिंह के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे थे। 22 साल बाद भी इस घटना के दोषियों को सजा नहीं मिली है। कोर्ट अगर दोषियों को बरी भी कर देती है तो उत्तराखंड की जनता मुलायम सिंह को शायद ही माफ करे।

 मायावती के साथ गेस्ट हाउस कांड को भी कोई नहीं भूला

2 जून 1995 को लखनऊ में हुआ स्टेट गेस्ट हाउस कांड मुलायम सिंह के सियासी करियर पर सबसे बड़ा दाग है। उस वक्त बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती से साथ हुए दुव्र्यवहार की वजह से मुलायम अगले दिन ही सत्ता से बेदखल हो गए। इस घटना से समाजवादी पार्टी की साख पर भी इससे बड़ा बट्टा लगा। दरअसल, 1993 के यूपी चुनाव में बसपा और सपा में गठबंधन हुआ था, जिसकी बाद में जीत हुई। मुलायम सिंह यूपी के सीएम बने। लेकिन, आपसी खींचतान के चलते 2 जून, 1995 को बसपा ने सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। इससे मुलायम सिंह की सरकार अल्पमत में आ गई थी। नाराज सपा के कार्यकर्ताओं ने लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस पहुंच कर मायावती को घेर लिया। यहां मायावती कमरा नंबर-1 में रुकी हुईं थीं। उनके साथ बसपा के एमएलए और कार्यकर्ता भी मौजूद थे। इस दौरान सपा कार्यकर्ताओं ने उन्हें मारपीट कर बंधक बना लिया। मायावती ने अपने आप को बचाने के लिए कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया था। करीब 9 घंटे बंधक बने रहने के बाद बीजेपी नेता लालजी टंडन ने अपने समर्थकों से साथ वहां पहुंचकर मायावती को वहां से सुरक्षित निकाला। इसी घटना के बाद से मायावती, लालजी टंडन को अपना भाई मानने लगीं

 आय से अधिक संपत्ति का मामला

मुलायम सिंह यादव और उनका परिवार पर आय से अधिक संपत्ति के मामले अदालतों में चले। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया कि 1977 में जब मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश में पहली बार मंत्री बने थे, तब से लेकर 2005 तक उनकी संपत्ति करीब 100 गुना ज्यादा बढ़ गई थी। ऐसे में इस बात की जांच होनी चाहिए कि आखिर इतनी संपत्ति उन्होंने और उनके परिवार ने कैसे अर्जित कर ली। शुरू में इस मामले में तो मुलायम सिंह के साथ उनके बेटे अखिलेश यादव, बहू डिंपल यादव, दूसरे बेटे प्रतीक यादव भी आरोपी थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने डिंपल यादव को जांच के दायरे से ये कहते हुए बाहर कर दिया था कि वो उस समय सार्वजानिक पद पर नहीं थीं। शीर्ष अदालत ने इस मामले में सीबीआई जांच की मांग वाली याचिका भी खारिज कर दी है।

 अमर सिंह जया प्रदा से रिश्ते

डिजायर न्यूज के सूत्रों के हवाले से मुलायम सिंह यादव को बॉलीवुड के करीब ले जाने में उनके राजनीतिक दोस्त अमर सिंह का भी बड़ा योगदान रहा। मुलायम सिंह के करीबी दोस्त आजम खान को भी मुलायम ने उत्तरप्रदेश में एक कदवार नेता बनाया, जया बच्चन के साथ साथ जया पर्दा, संजय दत्त, राजबब्बर जैसे कितने ही बॉलीवुड सितारों को अमर सिंह ने उत्तरप्रदेश में उत्तार कर समाजवादी पार्टी को एक अलग मकाम तक पहुंचाया, कई दफा अमर सिंह और मुलायम सिंह के रिश्तो में खटास भी आई पर दोनों की दोस्ती बनी रही और मुलायम सिंह अमर सिंह को राज्य सभा भेजते रहे। एक समय ऐसा भी था जब मुलायम सिंह हर बात अमर सिंह से शेयर करते थे।

अभी हालत नाजुक बनी हुई है

मुलायम सिंह यादव को सांस लेने में दिक्कत, यूरिन इन्फेक्शन और बीपी की शिकायत के बाद आईसीयू में एडमिट किया गया है। डॉक्टरों के मुताबिक अगले कुछ घंटे काफी नाजुक है। मुलायम सिंह की जांच रिपोर्ट और जो दवाएं उन्हें दी गई हैं, उनका असर देखने को मिलेगा। फिलहाल उनकी हालत स्थिर बनी हुई है। इस बीच प्रदेश भर में मुलायम सिंह के शीघ्र स्वस्थ होने के लिए दुआएं की जा रही हैं। सपा संरक्षक मुलायम सिंह के दोनों बेटे अखिलेश यादव, प्रतीक यादव और परिवार के अन्य सदस्य अस्पताल में उन्हें देखने पहुंचे हुए है। परिवार के सभी लोग मेदांता पहुंच गए है। डिजायर न्यूज उनके जल्दी स्वस्थ होने की कामना करता है।

संजीव शर्मा
एडिटर इन चीफ
03-10-2022 08:32 PM
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