धर्म और राजनीती के नाम पर लड़वा रहा मीडिया
डिजायर न्यूज नई दिल्ली - आज देश का माहौल ऐसा हो गया है कि आप अकेले या परिवार के साथ अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहे है। पहले राजनेताओं और धर्मगुरुओं की भूमिका समाज में अलग अलग थी, संस्कृति हो, संस्कार हो या आस्था की बात हो, हमारे धर्मगुरु अहम रोल अदा करते थे और समाज की जरुरतों को पूरा करने के लिए राजनेता थे। लेकिन अब एक विशेष समुदाय की ठेकेदारी कुछ चन्द लोगों ने ले ली है। अब राजनेता धर्म गुरु बन गए है और धर्म गुरुओं को राजनीती रास आने लगी है। सब को सब सुविधाएं चाहिए, अब सिर्फ वस्त्र से पहचान करना मुश्किल हो गया है।
आज के माहौल को देख कर जो बिग बॉस सीरियल आता है उसकी एक खास बात है, जो जितना बतमीज होगा, खिताब उसे ही मिलेगा। आज मीडिया का रोल अपने पथ से भटक गया है, ये जो डिबेट है, ये सिर्फ और सिर्फ नफरत को बढ़ावा दे रही है और सोने पर सुहागा सोशल मीडिया ने लगा दिया है। देश में दंगा करने वाले या देश को हानि पहुंचाने वाले लोग अगर देखें तो लाखों भी नहीं है, सिर्फ हजारो में हैं, राजनीतिक और धर्मगुरु भी अब हजारों में हैं, अगर हमारे देश की जनसंख्या की बात करें तो कुल आबादी 130 करोड़ के करीब है। फिर क्यों हजारों लोग हमें आपस में लड़वाते हैं। जो काम अंग्रेजों ने किया वही काम अब ये दुकान चलाने वाले कर रहे है, फूट डालो और राज करो।
क्या हिन्दू कभी खतरे में हो सकता है ? 70 साल में अगर देखें तो भारत में अब 1 अरब यानी 100 करोड़ से ज्यादा हिंदू हैं (2020 का आंकलन)। इसका मतलब ये हुआ कि आजादी के बाद हिंदुओं की आबादी करीब 80 करोड़ बढ़ी है। 1947 में देश में करीब 20 करोड़ हिंदू थे। जम्मू-कश्मीर, पंजाब, लक्षद्वीप और पूर्वोत्तर के 5 राज्यों को छोड़कर बाकी सभी राज्यों में हिंदू बहुसंख्यक हैं। 1951 से लेकर 2020 तक औसतन हर साल हिंदुओं की आबादी 1.14 करोड़ बढ़ी। दूसरी ओर मुस्लिमों की आबादी में औसतन सालाना बढ़ोतरी 25 लाख है। ऐसा तब है जब मुस्लिमों की जनसंख्या वृद्धि दर हिंदुओं के मुकाबले दोगुनी है।
भारत में हिंदू 100 सालों के ब्रिटिश राज और 700 वर्षों से ज्यादा वक्त तक मुस्लिमों के शासन के बावजूद बचा रहा, फलता-फूलता रहा। दुनिया के सबसे पुराने समुदाय में से एक यहूदी का भारत में वजूद रहा। 1950 वर्ष पहले भारत में ईसाइयों ने कदम रखा। हिंदुस्तान की सरजमीं से जैन, बौद्ध और सिख जैसे नए धर्मों की भी स्थापना हुई, प्रसार हुआ। किसी ने भी हिंदू धर्म के लिए बाधा खड़ी नहीं की और आज जब हिंदुओं की संख्या 1 अरब को पार कर गई है और हर साल इसमें 1 करोड़ से ज्यादा का इजाफा हो रहा है तो ये धर्म खतरे में है ?
अनुमानित 1.8 बिलियन या दुनिया की 24% से अधिक आबादी खुद को मुसलमानों के रूप में पहचानती है। इस्लाम एशिया, उप-सहारा अफ्रीका, उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व के 26 देशों में आधिकारिक धर्म है। दुनिया भर में किसी भी अन्य धर्म की तुलना में इस्लाम तेजी से बढ़ रहा है।
2010 में, दुनिया के केवल दो देशों में हिंदुओं के रूप में इसकी अधिकांश आबादी थी और वो देष हैं, नेपाल और भारत। 2015 की जनगणना के अनुसार, मॉरीशस में 48.14 प्रतिशत आबादी हिंदू थी। बांग्लादेश, फिजी, भूटान, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो और श्रीलंका में बहुत बड़े और प्रभावशाली हिंदू अल्पसंख्यक हैं।
मुस्लिमों के खिलाफ कुछ भेदभाव की जड़ तो पाकिस्तान के खिलाफ दुनिया की नाराजगी से है। दुनिया में 26 से ज्यादा देशों का राष्ट्रीय मजहब इस्लाम है। इनमें से कई तो भारत के प्रमुख ट्रेड पार्टनर हैं और वहां बड़ी तादाद में भारतीय रहते भी हैं। लेकिन टीवी की डिबेट्स या फिर सोशल मीडिया इस में आग में घी का काम करते हैं, सब ये दिखाना चाहते हैं कि उन से ज्यादा समझदार कोई नहीं है। सिर्फ अपनी इमेज को चमकाने के लिए सोशल मिडिया पोस्ट्स के माध्यम से भारतीय मुसलमानों को सिर्फ पाकिस्तान जाने की चुनौती दी जाती है। इनको कहा जाता है कि क्यों नहीं ये भारतीय मुस्लिम पाकिस्तान चले जाते। यहां तक कि बांग्लादेश का भी नाम नहीं लिया जाता जो 24 सालों तक पाकिस्तान का हिस्सा रहा था।
पाकिस्तान वाला मानसिक उन्माद पूरी तरह अकारण नहीं है। यह देश भीषण रक्तपात वाले विभाजन की याद दिलाता रहता है, जिसे ज्यादातर भारतीय गैरजरूरी और प्रतिशोधात्मक मानते हैं। पाकिस्तान 3 बार भारत के खिलाफ जंग छेड़ चुका है। वह खुलेआम आतंकवाद का समर्थन करता है और उसके लिए फंडिग करता है। पाकिस्तान के राजनेता भारत और भारतीय प्रतिष्ठानों के प्रति नफरत को देशभक्ति के प्रमाण के तौर पर पेश करते हैं। जिसे भारत से जितनी ज्यादा नफरत, वह उतना बड़ा देशभक्त। पाकिस्तान सिर्फ आंतकवाद के दम पर आगे बढ़ना चाहता है। तभी आज उसकी माली हालत विश्व में सबसे नीचे है।
2045-50 तक देश में मुसलमानों की तादाद 28.88 करोड़ होने का अनुमान है। उस वक्त तक हिंदुओं की तादाद भी बढ़कर 1.23 अरब हो जाएगी। यानी तब भी मुस्लिमों की तुलना में हिंदुओं की आबादी 4 गुना से ज्यादा होगी। मुसलमान 100 साल भी हिन्दुओ की आबादी के आस पास भी नजर नहीं आ सकते है। क्योंकि 1 करोड़ हिन्दू हर साल हमारी आबादी में जुड़ जाते हैं।
कुछ समय के लिए अगर मीडिया डिबेट और सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लग जाए तो लोग सिर्फ अपने काम में मन लगाएंगे ना कि इनकी भड़काउ डिबेटस में वक्त जाया करेंगे। तो कोई भय नहीं होना चाहिए, तथ्य के आधार पर फैसला कीजिए। अगर कोई संदेह हो तो सवाल उठाएं और तथ्यों पर बात करें। ऐसी स्थिति मत पैदा कीजिए कि मुस्लिमों का एक तबका खुद को अलग-थलग महसूस करने लगे और हिन्दू भी अपने आपको मुस्लिम समुदाय का प्रतिद्वंद्धी महसूस ना करे। हां, बदलते वक्त के साथ कई इस्लामी प्रथाओं और रिवाजों पर पुनर्विचार की बेशक जरूरत है- जैसे लाउडस्पीकरों पर अजान, बिना सोचे-समझे किसी भी तरह से तलाक, हिजाब का थोपा जाना। लेकिन लोगों को अमानवीय ठहराकर, निंदा या उपहास उड़ाकर किसी धर्म में सुधार नहीं हो सकता। इसके उलट असर होंगे। आज हिन्दू धर्म में भी कई सुधारो संस्कारों को घर घर पहुंचाने की आवश्कता हैं जैसे दहेज प्रथा, शिक्षा, नारी सषक्तिकरण और वातावरण जैसे अन्य कई मुद्दे हैं जिन पर किसी भी तरह की डिबेट नहीं होती, युवाओं के रोजगार व विकास का मुद्दा अब सिर्फ किताबी बात रह गई है। आखिरकार, धर्म के नाम पर आपस में लड़ने की बजाय भाईचारे की भावना के साथ देष और समाज के विकास में अपना योगदान दें।