फांसी और फिर बरी -क्या गैंगरेप के आरोपी अब खुले घूमेंगे ?
डिजायर न्यूज, नई दिल्ली– जिस माँ बाप ने अपनी बच्ची गवाने के बाद भी 10 साल कोर्ट के चक्कर लगाए हो और अंत में उनके सामने से आरोपी हंसते हुए छूट जाए तो एक माँ बाप के दिल पर क्या गुजरेगी इसका अंदाजा लगाना बड़ा ही कठिन है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रषासन पर आखिर कहाँ केस कमजोर पड़ गया। क्यों पुलिस ने इतने संवेदनशील केस को क्यों सही से अदालत के सामने पेश नहीं किया। डिजायर न्यूज़ आज दस साल पहले हुए छावला गैंगरेप का छोटा सा विश्लेषण कर रहा है।
क्या है छावला गैंगरेप
दिल्ली के साउथ वेस्ट डिस्ट्रिक्ट के छावला इलाके में 10 साल पहले हुए रेप और हत्याकांड के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला पलट दिया। नतीजा, फांसी के सजायाफ्ता तीनों मुजरिम बाइज्जत बरी हो गए। 7 नवंबर 2022 दिन सोमवार को देश में पूरे दिन एक ही बात की चर्चा चारों ओर बनी रही। दिल्ली के छावला इलाके में घटी अपहरण, रेप और हत्या के मुजरिमों को ‘फांसी’ के तख्ते पर चढ़ाने के हाई कोर्ट के आदेश को पलट देने की चर्चा। दिल्ली की निचली अदालत ने तीनों मुजरिमों को सजा-ए-मौत सुनाई थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने भी मुजरिमों की सजा पर अपनी सहमति जता दी। ऐसे में फांसी के फंदे से खुद की गर्दन को बचाने के लिए तीनों मुजरिम सुप्रीम कोर्ट की देहरी पर पहुंच गए थे। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए सनसनीखेज कत्ल के तीनों आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया। आखिर ऐसा क्या कारण रहा जो सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा निर्णय दिया।
डिजायर न्यूज के अनुसार देश को हिला देने वाले इस मुकदमे में न केवल पीड़िता का परिवार हार गया, बल्कि इसको लेकर दिल्ली पुलिस में भी अंदरूनी घमासान मचा है। दिल्ली पुलिस की कानूनी विंग में इस बात को लेकर माथापच्ची शुरु हो गई है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत और पुलिस की तफ्तीश में मौजूद झोलों के चलते ही, ट्रायल कोर्ट से फांसी के सजायाफ्ता तीनों मुजरिमों को बाईज्जत सोमवार को बरी कर दिया। पुलिस द्वारा पहले तो पड़ताल में छोड़े गए झोल और उसके बाद ट्रायल कोर्ट द्वारा सुना दिए गए फांसी के फैसले पर, सुप्रीम कोर्ट ने कई सवाल खड़े किए हैं। जिनके मुताबिक, निचली अदालत ने इतने संवेदनशील मामले में भी सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया है। हालांकि निचली अदालत स्वविवेक से भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-165 के तहत अगर चाहती तो, सच्चाई की तह तक पहुंचने की कोशिश कर सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
निर्भया जैसी दरिंदगी, अपहरण के बाद लड़की से दरिंदगी
9 फरवरी 2012 की रात दिल्ली के छावला इलाके से 19 साल की इस लड़की का अपहरण कर लिया गया था। उसके कुछ दिन बाद लड़की की लाश हरियाणा के रेवाड़ी में खेत में पड़ी मिली थी। लड़की रात को दफ्तर से वापिस घर लौट रही थी, तभी लाल रंग की कार में उसका तीन लोगों ने अपहरण कर लिया था। इसके बाद रास्ते में अपहरणकर्ताओं ने ठेके से पहले शराब खरीदी। फिर नशे में लड़की के साथ दरिंदगी करना शुरु कर दिया। पुलिस की ही तफ्तीश के मुताबिक लड़की के बदन को दांतों से नोच तक डाला गया था। उसके बाद कार में रखे जैक और लोहे के अन्य औजारों से उसके बदन पर तब तक वार पर वार किए जाते रहे, जब तक पीड़िता लहूलुहान होकर बेसुध नहीं हो गई। पीड़िता को कार के गरम साइलेंसर से दागा गया। उसके निजी अंगों में लोहे की रॉड और कांच की बोतल तोड़कर ठूंस डाली गई। इसके बाद लड़की के चेहरे पर और आंखों में तेजाब भी डाला गया। तेजाब का इंतजाम हत्यारों ने कार की बैटरी से किया था। मतलब, अपहरणकर्ता जो वहशीपना पेश कर सकते थे, उसमें उन्होंने कहीं कोई गुंजाइश बाकी नहीं रखी। अब आइए जानते हैं कि लड़की के घर वापिस न पहुंचने की शिकायत लेकर पिता जब स्थानीय थाने गए तो, वहां उन्हें वाहन न होने की दुहाई देकर पुलिस ने पहले तो टरका दिया। उसके बाद जैसे-तैसे जब मुकदमा दर्ज करने की नौबत आ गई तो अब सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली पुलिस की ढीली तफ्तीश ने खाकी को नंगा साबित कर डाला है। हैरत तो सोमवार को तब हुई जब सुप्रीम कोर्ट ने, तीनों सजायाफ्ता मुजरिमों रवि, राहुल और विनोद को बाईज्जत बरी कर दिया। दरअसल, हैरत की बातें तो इस मुकदमे में शुरुआत से ही सामने आने लगी थीं। जो सिर्फ दिल्ली पुलिस के उन अधिकारियों की फाइलों में छिपी हुई थीं। जो इस लोमहर्षक कांड की तफ्तीश कर रहे थे।
पुलिस ने 11 दिन तक मालखाना मे पड़े रहे डीएनए सैंपल
घटना की तफ्तीश में जुटे दिल्ली पुलिस (छावला थाना पुलिस) के पड़ताली अफसर की पहली लापरवाही तो तब सामने आई थी, जब उसने संदिग्ध मुलजिमों के डीएनए सैंपल घटना के चार दिन बाद ही यानी 16 फरवरी 2012 को ले लिए। मगर डीएनए सैंपल के वे महत्वपूर्ण नमूने 11 दिन तक थाने (थाना मालखाना) में ही पड़े रहे। मतलब दिल्ली पुलिस का जांच अधिकारी वे डीएनए सैंपल 27 फरवरी सन् 2012 को सीएफएसएल भेज सका था। पुलिस की इस लापरवाही का लाभ कोर्ट में आरोपियों को मिलना था और मिला भी। सर्वोच्च न्यायालय में मौजूद लापरवाह दिल्ली पुलिस अपनी ढीली पड़ताल का यह तमाशा खामोश खड़ी देखती रही। दिल्ली पुलिस की ढीली पड़ताल में मौजूद झोल पकड़ चुके बचाव पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि, 49 गवाहों में से 44 का तो क्रॉस एग्जामिनेशन तक नहीं कराया गया था न ही आरोपियों की पहचान के लिए उनकी पहचान परेड ही करवाई गई।
सुप्रीम कोर्ट ने इन्वेस्टीगेशन पर खड़े किए कई सवाल
ट्रायल कोर्ट से सजा-ए-मौत पाए तीनों मुजरिमों को बाईज्जत बरी करने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि, मुकदमे की पड़ताल के दौरान लड़की के शव पर जो ‘बाल’ मिला था, उसकी बरामदगी भी संदिग्ध रही है। शव भी बरामदगी के वक्त सड़ा हुआ नहीं था। जब बुरी तरह से लड़की को मारा गया था तो उसके शव को सड़ी हुई हालत में मिलना चाहिए था। कुल जमा यही माना जा रहा है कि मुजरिमों के पक्ष में हुए इस फैसले के लिए कहीं न कहीं दिल्ली पुलिस की ढीली पड़ताल भी काफी हद तक जिम्मेदार रही है। पुलिस द्वारा पहले तो पड़ताल में छोड़े गए झोल और उसके बाद ट्रायल कोर्ट द्वारा सुना दिए गए फांसी के फैसले पर, सुप्रीम कोर्ट ने कई सवाल खड़े किए हैं। जिनके मुताबिक, निचली अदालत ने इतने संवेदनशील मामले में भी सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया है। हालांकि निचली अदालत स्वविवेक से भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-165 के तहत अगर चाहती तो, सच्चाई की तह तक पहुंचने की कोशिश कर सकती थी। लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
डिजायर न्यूज के अनुसार ये सही है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय सही सुनाया होगा अपने पूरे विवेक से, पर क्या जिन लोगों ने इन्वेस्टीगेशन ठीक नहीं की, क्या उन पर भी कोई कार्यवाही होगी ? क्या माँ बाप का विश्वास कानून पर रहेगा ? क्या कभी मरने वाली लड़की की आत्मा को शांति मिलेगी ? कितने ही ऐसे सवाल है जिन पर शायद खोजने पर भी कोई जवाब मिले। आखिर रेप जैसे जघन्य अपराध में भी पुलिस सही से इन्वेस्टिगेशन करने में असमर्थ है। लोगों में रोष है पर कर क्या सकते हैं।
एडिटर इन चीफ
नई दिल्ली