नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली (NLU): आत्महत्या की घटनाओं ने उठाए सवाल, स्टूडेंट्स की मानसिक स्थिति पर ध्यान देने की ज़रूरत–लगातार आत्महत्या का मामला–डिजायर न्यूज़
नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली (NLU): आत्महत्या की घटनाओं ने उठाए सवाल, स्टूडेंट्स की मानसिक स्थिति पर ध्यान देने की ज़रूरत–लगातार आत्महत्या का मामला–डिजायर न्यूज़
डिजायर न्यूज़ नई दिल्ली–हाल ही में, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (NLU) दिल्ली में आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं ने पूरे शैक्षिक समुदाय को झकझोर कर रख दिया है। बीते कुछ सप्ताह में यह तीसरी आत्महत्या की घटना है, जिसने छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के बीच गहरी चिंता उत्पन्न की है। दिल्ली की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (NLU) की एक पहली साल की लॉ छात्रा श्रेयांशी चंद्रा ने रविवार को आत्महत्या कर ली, जो कि कुछ सप्ताह में तीसरी ऐसी घटना है। यह दुखद घटना छात्रा के घर पर हुई। इस हादसे के बाद, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ने 30 सितंबर और 1 अक्टूबर को छात्रा के सम्मान में गैर-शैक्षणिक दिन घोषित किए हैं।
ये पहली घटना नहीं है जब NLU दिल्ली के किसी छात्र ने आत्महत्या की है। 23 सितंबर को भी नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (NLU), दिल्ली के पहले वर्ष के एक छात्र ने आत्महत्या कर ली थी। छात्र का नाम शाह खुशील विशाल था। उनकी याद में NLU दिल्ली ने 23 सितंबर को एक गैर-शिक्षण दिन घोषित किया था। यह विश्वविद्यालय में एक महीने के भीतर दूसरा ऐसा मामला था।
इससे पहले भी नई दिल्ली,नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली की एक दलित छात्रा अमृतवर्षिनी सेंथिल कुमार ने इसी महीने की शुरू में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी। यह घटना दिल्ली के सम्मानित शैक्षणिक संस्थान में हुई, जहां तीसरे वर्ष की एलएलबी की छात्रा, जो मूल रूप से चेन्नई की रहने वाली थी, अपने छात्रावास के कमरे में मृत पाई गई। पुलिस को छात्रा के पास से एक सुसाइड नोट भी मिला है।
एडिशनल डीसीपी (द्वारका) निशांत गुप्ता ने बताया कि छात्रा पिछले कुछ समय से पढ़ाई के दबाव से जूझ रही थी। अप्रैल महीने में उसने अपने रूममेट्स से आत्महत्या के विचार भी व्यक्त किए थे, जिसके बाद उसके रूममेट्स ने छात्रा के परिवार को इसकी जानकारी दी। परिवार ने उसे चेन्नई ले जाकर कुछ समय के लिए आराम करने की सलाह दी थी और एक सप्ताह तक उसे चेन्नई में रखा गया था।
पुलिस अधिकारी ने बताया कि छात्रा के सुसाइड नोट में लिखा था कि उसने अपने इस निर्णय के लिए किसी को दोषी नहीं ठहराया है। उसने अपने माता-पिता से माफी भी मांगी है कि वह इतना बड़ा कदम उठा रही है।फिलहाल, छात्रा के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है। छात्रा के माता-पिता के गुरुवार को दिल्ली आने की उम्मीद है, जिसके बाद पोस्टमार्टम की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।
इससे पहले बीते महीने में भी एक 20 वर्षीय विशु सिंह, जो हरियाणा के चरखी दादरी का निवासी था, ने दिल्ली के लक्ष्मी नगर इलाके में स्थित अपने पीजी कमरे में आत्महत्या कर ली। विशु दिल्ली के द्वारका स्थित NLU दिल्ली में कानून की पढ़ाई कर रहा था और CLAT परीक्षा (कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट) पास कर इस सम्मानित विश्वविद्यालय में दाखिला लिया था।
घटना 29 अगस्त को घटित हुई, जब विशु लक्ष्मी नगर के गुरु रामदास नगर के एक पीजी में रह रहा था। पुलिस को सूचना मिली कि पीजी में रह रहा एक लड़का बीमार था और ऑक्सीजन सिलेंडर से सांस ले रहा था, लेकिन अब उसकी हालत और बिगड़ चुकी है। जब पुलिस और विशु के परिवारवालों ने दरवाजा तोड़ा, तो देखा कि विशु अपने बिस्तर पर मृत पड़ा हुआ था। उस समय उसके चेहरे पर एक प्लास्टिक बैग था और कमरे का एसी भी चालू था।
घटना के बाद पुलिस ने जब जांच शुरू की, तो विशु के कमरे से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला, जिससे उसकी आत्महत्या के कारणों का पता नहीं चल सका। पुलिस ने घटनास्थल की गहन जांच की, लेकिन कोई गड़बड़ी या संदेहास्पद चीज़ नहीं पाई गई। फिलहाल, आत्महत्या के कारणों की जांच जारी है।
NLU दिल्ली की स्टूडेंट बार काउंसिल ने इन घटनाओं के बाद एक प्रेस रिलीज जारी की, जिसमें उन्होंने बताया कि वे इन कठिन समय में छात्रों के साथ खड़े हैं और प्रशासन के साथ मिलकर काम कर रहे हैं ताकि छात्रों की चिंताओं को सुना जा सके और उन पर आवश्यक कार्रवाई की जा सके। परिषद ने सभी छात्रों को समर्थन देने की प्जिम्मेदारी जताई है और एक स्वस्थ और सहयोगपूर्ण माहौल बनाने की अपील की है।
एनएलयू दिल्ली की रजिस्ट्रार प्रोफेसर रूही पॉल ने बार एंड बेंच को भेजे एक ईमेल के जवाब में खुलासा किया कि विश्वविद्यालय के सिस्टम का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए एक ऑडिट चल रहा है।
फिलहाल, एनएलयू दिल्ली कैंपस में दो काउंसलर हैं, जिनसे छात्र अपनी समस्याओं के बारे में बातचीत के लिए समय बुक कर सकते हैं। इसके अलावा, विश्वविद्यालय एक ऑनलाइन प्लेटफार्म ‘YourDost’ के माध्यम से 24×7 काउंसलिंग सेवाएं भी प्रदान करता है।रजिस्ट्रार ने यह भी बताया कि विश्वविद्यालय ने छात्रों की मदद और उन्हें चौबीसों घंटे सहायता देने के लिए मानसिक स्वास्थ्य टीम का विस्तार किया है।छात्र परिषद ने मीडिया और पूर्व छात्रों से भी अपील की है कि वे इस संवेदनशील मुद्दे पर बिना किसी सत्य की जांच के किसी भी प्रकार की अफवाह फैलाने से बचें, क्योंकि यह समय पूरे स्टूडेंट समुदाय के लिए बेहद कठिन है।
कुछ छात्रों ने अपना नाम प्रकाशित नहीं करने पर बताया कि यूनिवर्सिटी कॉलेज से बिलकुल अलग है यहाँ स्पोर्ट्स के नाम पर एक बेडमिटन कोर्ट है अंदर का माहौल एक दम शांत है कभी भी कोई रोचक एक्टिविटी नहीं कराई जाती है सिर्फ मशीन की तरह पढ़ाई ही पढ़ाई होती है , जो बच्चे स्कूल से निकल कर सीधा यहाँ आते है उन्हे यूनिवर्सिटी कैम्पस एक हॉस्पिटल की तरह लगता है। इस कैंपस में ही दिल्ली जुडिशल अकादमी भी है जिसमें नए जुडिशल ऑफिसर की ट्रेनिंग होती है। ये अच्छी बात है कि यूनिवर्सिटी में बच्चो पर खूब मेहनत करके उन्हे एक अच्छे कर्रिएर के लिए तैयार किया जाता है लेकिन मानसिक तनाव काम करने के लिए यहाँ कुछ भी नहो है।
दूसरा सब से बड़ा और अहम् कारण है यहाँ की फीस एक लॉ स्टूडेंट 5 साल में अपनी लॉ की डिग्री हासिल करता है और उसके लिए उसे लगभग 20 लाख रूपये फीस के देने होते है अगर वो पढ़ाई नहीं करेगा तो ये सब पैसा बेक़ार चला जाएगा ,माँ बाप का प्रेशर भी होता है एक गरीब माँ बाप तीन से लेकर चार लाख सालाना फीस भरते है , बच्चों पैर वो भी एक प्रेशर है। और अगर प्लेसमेंट की बात करे तो वो अब हर जगह ना के बराबर है। जब आई आई टी जैसे संस्थाओ में ही 25 से 30 परसेंट प्लेसमेंट है तो प्रेशर का अंदाजा लगाया जा सकता है ,
इन आत्महत्या घटनाओं ने एक बार फिर मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है, खासकर उन छात्रों के बीच जो पढ़ाई के दबाव और प्रतिस्पर्धी माहौल का सामना कर रहे हैं। विश्वविद्यालयों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता को लेकर कई बार चर्चा हुई है, लेकिन इस तरह की घटनाएं यह संकेत देती हैं कि इस दिशा में और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है।
छात्रों का कहना है कि ऐसे सम्मानित संस्थानों में अध्ययन का दबाव अत्यधिक होता है, और कई बार छात्र अपनी भावनाओं को साझा करने में असमर्थ होते हैं। इसके साथ ही, सामाजिक और व्यक्तिगत अपेक्षाओं का बोझ भी छात्रों पर भारी पड़ता है, जो उन्हें मानसिक रूप से कमजोर बना सकता है। इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए जरूरी है कि विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान दे और उनके लिए परामर्श सेवाएं उपलब्ध कराए। छात्रों को यह महसूस होना चाहिए कि वे किसी न किसी से बात कर सकते हैं और उनकी समस्याओं को समझने और हल करने का प्रयास किया जाएगा।
इसके अलावा, समाज के विभिन्न वर्गों जैसे परिवार, दोस्तों, और शिक्षकों का भी दायित्व है कि वे छात्रों के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य का ध्यान रखें। मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ानी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी छात्र को अकेला या असहाय महसूस न हो।
पिछले महीनों में घटित घटनाएं मानसिक स्वास्थ्य के प्रति गंभीर चिंता को उजागर करती हैं। यह जरूरी है कि विश्वविद्यालय, प्रशासन, और समाज एक साथ मिलकर काम करें ताकि छात्रों के लिए एक सुरक्षित, सहयोगात्मक और समावेशी माहौल बनाया जा सके। केवल एक स्वस्थ मानसिक स्थिति ही छात्रों को उनके अकादमिक और व्यक्तिगत जीवन में सफलता दिला सकती है। आवश्यक है कि विश्वविद्यालय और समाज मिलकर मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने और छात्रों को समय पर सहायता प्रदान करने की दिशा में काम करें। संस्थान की ज़िमेदारी है कि वो समय समय पर स्पोर्ट्स से लेकर कल्चरल इवेंट्स वैगरा पर ध्यान दे।
संजीव शर्मा
एडिटर इन चीफ
अलीशा शाहिद
अस्सिस्टेंट सब एडिटर