सुप्रीम कोर्ट की उत्तराखंड सरकार को फटकार: विवादित आईएफएस अधिकारी की नियुक्ति पर क्या है पूरा मामला?–डिजायर न्यूज़
सुप्रीम कोर्ट की उत्तराखंड सरकार को फटकार: विवादित आईएफएस अधिकारी की नियुक्ति पर क्या है पूरा मामला?–डिजायर न्यूज़
डिजायर न्यूज़ नई दिल्ली– सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को कड़ी फटकार लगाई है, जो हाल ही में एक विवादित आईएफएस अधिकारी को राजाजी टाइगर रिजर्व का निदेशक नियुक्त करने के फैसले को लेकर सामने आई है। न्यायमूर्ति बीआर गवई, पीके मिश्रा और केवी विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि मुख्यमंत्री ने राज्य के वन मंत्री और अन्य अधिकारियों की राय की अनदेखी करते हुए यह फैसला लिया। यह कदम न्यायपालिका द्वारा गंभीरता से लिया गया है और इसे सामंती युग के तौर-तरीकों से जोड़कर देखा गया है।
यह मामला उत्तराखंड के राजाजी टाइगर रिजर्व से जुड़ा है, जहां एक झगड़ालू आईएफएस अधिकारी को रिजर्व का निदेशक नियुक्त किया गया। इस नियुक्ति पर आपत्ति जताते हुए वन मंत्री और अन्य उच्चाधिकारियों ने अपनी असहमति दर्ज कराई थी। इसके बावजूद, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उनकी राय को एक तरफ कर इस अधिकारी की नियुक्ति को मंजूरी दी। यह नियुक्ति अब सवालों के घेरे में आ गई है, और सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए मुख्यमंत्री को फटकार लगाई है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तीखी टिप्पणी की और कहा, “हम पुराने जमाने के राजा नहीं हैं, जो बिना किसी सलाह-मशविरा के फैसले ले सकते हैं। आज हम एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में हैं, और यहां हर फैसले में नियमों और कानूनों का पालन अनिवार्य है।” न्यायमूर्ति बीआर गवई ने कहा कि सरकार के प्रमुखों से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे सामंती दौर की तरह निर्णय लें। यह टिप्पणी स्पष्ट रूप से सूचना देती है कि कोर्ट सरकार के इस कदम को गंभीर चूक मान रही है।
इस विवाद की जड़ में राज्य के वन मंत्री और अन्य बड़े अधिकारियों की राय को नजरअंदाज किया जाना है। वन विभाग के बड़े अधिकारी और राज्य के मंत्री ने एक अलग अधिकारी को राजाजी टाइगर रिजर्व का निदेशक नियुक्त करने की सिफारिश की थी। हालांकि, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस सिफारिश को अनदेखा कर अपनी सूझबूझ से एक विवादित अधिकारी की नियुक्ति की।
कौन है यह विवादित अधिकारी?इस आईएफएस अधिकारी पर पहले भी कई विवाद खड़े हो चुके हैं। उनके कामकाज और फैसलों पर सवाल उठाए गए थे, जिसके चलते उन्हें कई बार विभागीय जांचों का सामना करना पड़ा था। इसके बावजूद, मुख्यमंत्री ने उनकी नियुक्ति को मंजूरी दी, जिससे राज्य के प्रशासनिक और वन विभाग में खलबली मच गई। विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे पर सरकार को आड़े हाथों लिया है और इसे सत्ता का दुरुपयोग करार दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यह भी कहा कि मुख्यमंत्री के इस कदम ने संविधान के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है। न्यायमूर्ति बीआर गवई ने कहा कि सरकार को अपने फैसले लेने से पहले संबंधित विभागों की राय लेना आवश्यक है, खासकर जब मामला इतना संवेदनशील हो। अदालत ने यह भी कहा कि इस तरह के मामलों में सरकार का मनमाना रवैया अस्वीकार्य है और यह लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ है।
इस मामले ने राजनीतिक माहौल को भी गरमा दिया है। विपक्षी दलों ने इस नियुक्ति को लेकर सरकार की आलोचना की है और इसे सत्ता का दुरुपयोग करार दिया है। उनका कहना है कि मुख्यमंत्री ने सत्ता का गलत इस्तेमाल किया है और बिना उचित प्रक्रिया का पालन किए हुए विवादित अधिकारी की नियुक्ति की है। यह मामला न केवल वन विभाग बल्कि राज्य की पूरी प्रशासनिक प्रणाली पर सवाल खड़े कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला स्पष्ट रूप से सरकार को यह संदेश देता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी भी निर्णय में पारदर्शिता और उचित प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है। अदालत ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री को अपनी जिम्मेदारियों का पालन करते हुए विभागीय अधिकारियों की राय को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। यह फैसला भविष्य में राज्य सरकारों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल के रूप में देखा जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को दी गई यह फटकार एक महत्वपूर्ण न्यायिक दखल है। यह मामला दिखाता है कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में किसी भी तरह की चूक को अदालतें गंभीरता से लेती हैं। इस मामले का असर न केवल उत्तराखंड सरकार पर पड़ेगा, बल्कि यह अन्य राज्यों की सरकारों के लिए भी एक सबक होगा कि वे बिना उचित प्रक्रिया का पालन किए किसी भी प्रकार के फैसले न लें।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न्याय और पारदर्शिता की दिशा में एक मजबूत कदम है और यह सुनिश्चित करता है कि सरकारें अपनी जिम्मेदारियों को सही ढंग से निभाएं।
संजीव शर्मा
एडिटर इन चीफ
अलीशा शाहिद
अस्सिस्टेंट सुब एडिटर