बाल विवाह समाज के लिए सब से बड़ी कुरीति
डिजायर न्यूज, नई दिल्ली– आजादी के 75 साल होने को आए पर अगर समाज की कुरीतियों और बुराइयों की बात करें तो दहेज प्रथा से लेकर बाल विवाह आज भी देश की सब से बड़ी समस्या है, कितने ही कानून बन गए हो लेकिन अभी भी लोगो में ना डर है, ना ही समाज इन बुराईयों को खत्म करने की कोशिश कर रहा है। देश के राज्य असम ने सब से पहले कठोर कदम उठा कर समाज को एक सन्देश देने की पहल की है। अब बाल विवाह पर असम सरकार के फैसले की गूंज देश भर में सुनाई दे रही है, जगह जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे है। जहाँ कहीं असम सरकार की इस पहल की तारीफ हो रही है तो कुछ संगठन इसे एक खास तबके पर प्रहार बता रहे। जबकि असम सरकार सभी इल्जामों से इंकार कर रही है। कई संगठन इसका समर्थन कर रहे हैं तो कई विरोध में सड़कों पर है।
हाल ही में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसके अनुसार, असम में मातृ और शिशु मृत्यु दर बहुत ज्यादा है। इसके बाद सरकार ने बाल विवाह के खिलाफ अभियान चलाया है। सीएम हिमंत बिस्वा सरमा के निर्देश पर अब तक 4,036 लोगों पर केस दर्ज किया जा चुका है। वहीं, असम पुलिस ने 2,442 लोगों को गिरफ्तार किया है। सीएम सरमा ने 23 जनवरी को ऐलान करते हुए कहा था कि असम सरकार बाल विवाह के खिलाफ एक राज्यव्यापी अभियान शुरू करेगी। इसमें 14 साल से कम उम्र की लड़कियों से शादी करने वाले पुरुषों पर पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज किया जाएगा। वहीं, 14-18 साल की लड़कियों से शादी करने वालों के खिलाफ बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत मामला दर्ज होगा।
असम के मुख्यमंत्री के अनुसार, ‘पति की गिरफ्तारी के बाद उसकी नाबालिग पत्नी को तुरंत अरुणोदय योजना की धनराशि और मुफ्त चावल मुहैया कराया जाएगा, ताकि पति की गैर-मौजूदगी में उसे किसी भी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े। उन्होंने सभी से सहयोग करने का अनुरोध किया है। उनका यह भी कहना है कि 14 वर्ष से अधिक उम्र की लड़कियों से शादी करने वालों को जमानत मिल जाएगी, लेकिन जिन्होंने इससे कम उम्र की लड़की से विवाह किया है, उन पर पॉक्सो लगेगा। मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि असम में 31 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल की कानूनी उम्र से पहले कर दी गई है।
राज्य में अब तक ढाई हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। इनमें 78 महिलाएं भी शामिल हैं। हजारों आरोपियों को रखने के लिए अब यहां अस्थाई जेल बनाई जा रही हैं। 4,074 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किए जा चुके हैं। बेटों और पति की गिरफ्तारी के बाद बड़ी संख्या में महिलाएं आगे आकर अब इसका विरोध करने लगी हैं। महिलाओं का कहना है कि ‘‘उनके जेल जाने के बाद हम और हमारे परिवार का गुजारा कैसे होगा‘‘?
सर्वेक्षण के अनुसार देश में 20 से 24 साल की उम्र की 23.3 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं जिनका बाल विवाह हुआ है। लोग इस सामाजिक बुराई के प्रति आंखें मूंदकर बैठे हैं। बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 ने बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929 का स्थान लिया, जो ब्रिटिश काल के दौरान अधिनियमित किया गया था। यह एक बच्चे को 21 साल से कम उम्र के पुरुष और 18 साल से कम उम्र की महिला के रूप में परिभाषित करता है।
अगर आंकड़ों की बात करें तो पश्चिम बंगाल में 42 परसेंट, झारखण्ड में 35, बिहार में 40, त्रिपुरा में 39, आँध्रप्रदेश 33, असम में 32, तेलंगाना 27, राजस्थान और मध्यप्रदेश 25 -25 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल से पहले हो जाती है। इसी तरह लड़कों की शादी भी 21 वर्ष से पहले का आंकड़ा भी कुछ इस से मिलता जुलता है। बाल विवाह को रोकने के लिए समय समय पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारें अभियान चलाती रहती हैं। पर उसका असर बड़ा कम दिखाई देता है, समाज से जुड़े संगठनों को सामने आकर इस कुरीति के खिलाफ मोर्चा खोलना पड़ेगा। तब कहीं जाकर इस समस्या का समाधान निकल सकता है।
सरकार ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर कई सालों से अभियान चला रखा है, पर आज भी समाज में बेटियों को बोझ ही समझा जाता है। आज अगर सरकार शिक्षा और रोजगार पर ध्यान दे तो आने वाले समय में बच्चियाँ हमारे देश का भविष्य बन सकती है, उन्हे शिक्षा से लेकर स्वावलम्बी बनाना सब से जरुरी है। बाल विवाह एक कैंसर जैसे बीमारी है, समाज में कम उम्र में शादी उन्हें मौत के मुँह में धकेल देती है। डिजायर न्यूज आज इस लेख के माध्यम से बताना चाहता है कि लड़कियों को बोझ ना समझ कर हमें उन्हें शिक्षा के साथ साथ अपने पैरों पर खड़े होने तक हमें उनका साथ देना चाहिए। सभी संगठनों को सामने आकर इस कुरीति को खत्म करना चाहिए।
एडिटर इन चीफ