जज ही जज का दुश्मन – यू पी की जज ने सुप्रीम कोर्ट से जिंदगी खत्म करने की गुहार लगाई -डिजायर न्यूज़
जज ही जज का दुश्मन – यू पी की जज ने सुप्रीम कोर्ट से जिंदगी खत्म करने की गुहार लगाई -डिजायर न्यूज़
डिजायर न्यूज़ नई दिल्ली – नारी शशक्तिकरण की बड़ी बड़ी बाते हर रोज हमारे सामने आती है , नारी को बराबर का दर्ज़ा दिया गया है ? क्या ये सब अभी भी क़िताबी बाते है लगता तो ऐसा ही है। उत्तरप्रदेश के लखनऊ की बेटी 2019 में जज लगी और उसने सोच लिया की अब वो सब को इन्साफ देगी लेकिन कभी उसने ये नहीं सोचा की एक दिन वो इन्साफ तो दूर की बात खुद अपने आप को ख़त्म करने के लिए देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खट खटाएगी ? बांदा जिले में तैनात सिविल महिला जज का हैरान करनेवाला मामला सामने आया है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर जिंदगी खत्म करने की अनुमति मांगी है.
बांदा में तैनात सिविल जज अर्पिता साहू ने इच्छा मृत्यु की गुहार लगाई है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में गंभीर आरोप लगाए हैं. उनका ये पत्र सोशल मीडिया और मीडिया में खूब वायरल हो रहा है। उन्होंने कहा कि पत्र को लिखने का उद्देश्य मेरी कहानी बताने और प्रार्थना करने के अलावा कुछ और नहीं है. “मैं बहुत उत्साह के साथ न्यायिक सेवा में शामिल हुई, सोचा था कि आम लोगों को न्याय दिला पाऊंगी. मुझे क्या पता था कि न्याय के लिए हर दरवाजे का भिखारी बना दिया जाएगा.” मुख्य न्यायाधीश को संबोधित पत्र में उन्होंने कहा कि काफी निराश मन से लिख रही हूं. आरोप है कि बाराबंकी में तैनाती के दौरान सिविल जज अर्पिता साहू को प्रताड़ना से गुजरना पड़ा. जिला जज पर शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का आरोप है. उन्होंने आरोप लगाया कि रात में भी जिला जज से मिलने के लिए कहा गया. इस लिए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर इच्छामृत्यु मांगी है।
महिला जज ने लगाई इच्छा मुत्यु की गुहार
अर्पिता साहू ने कहा कि मैंने मामले की शिकायत इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से 2022 में की. आज की तारीख में कोई कार्रवाई नहीं हुई. मेरी परेशानी को जानने की किसी ने परवाह भी नहीं की. जुलाई 2023 में मैंने मामले को एक बार फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट की आंतरिक शिकायत समिति के सामने उठाया. जांच शुरू करने में 6 महीने और एक हजार ईमेल लग गए. उन्होंने प्रस्तावित जांच को दिखावा बताया है. गवाह जिला जज के अधीनस्थ हैं. इस बात से साफ़ अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट महिलाओ के वर्कप्लेस पर योन उत्पीड़न के लिए बात करता है वही आज उनके खुद के कर्मचारी इन्साफ की मांग कर रही है और किसी ने भी उसका निदान करने की कोशिश नहीं की।
ऐसे में बॉस के खिलाफ गवाह कैसे जा सकते हैं. निष्पक्ष जांच तभी हो सकती है कि जब गवाह अभियुक्त के प्रशासनिक नियंत्रण से आजाद हो. मैंने जांच लंबित रहने के दौरान जिला जज को ट्रांसफर किए जाने का निवेदन किया था. लेकिन मेरी प्रार्थना पर भी ध्यान नहीं दिया गया. “जांच अब जिला जज के अधीन होगी. हमें मालूम है ऐसी जांच का नतीजा क्या निकलता है.” इसलिए मुख्य न्यायाधीश से जिंदगी को खत्म करने की अनमुति मांगी है.
नारी सम्मान और शशक्तिकरण की बात सिर्फ किताबी नज़र आती है और अर्पिता साहू जज ने जो हींमत दिखाई है वो काबिले तारीफ़ है। पत्र की सच्चाई की पुस्टी हम नहीं कर रहे है , ऐसी बहादुर बेटी को इन्साफ मिलना ही चाहिए। तथेय कितने सही है और कितने गलत इसपर निर्णय जल्दी होना चाहिए।
संजीव शर्मा
एडिटर इन चीफ