मैं अटल हूं – बॉलीवुड क्यों नहीं बना पाता अच्छी बायोपिक , पंकज त्रिपाठी की एक्टिंग के बावुजूद , फिल्म फ्लॉप की तरफ जा रही – डिजायर न्यूज़

मैं अटल हूं – बॉलीवुड क्यों नहीं बना पाता अच्छी बायोपिक , पंकज त्रिपाठी की एक्टिंग के बावुजूद , फिल्म फ्लॉप की तरफ जा रही – डिजायर न्यूज़

डिजायर न्यूज़ नई दिल्ली – अभी हॉल ही में रिलीज़ हुई मैं अटल हूं को सिनेमाघरो में अच्छा रेस्पॉन्स नहीं मिला , बायोपिक बनाना आसान नहीं है कितनी ही फिल्मे पहले बनी उनमें खिलाड़िओ को लेकर अगर बात करे तो भाग मिलखा भाग , पान सिंह तोमर , एमएस धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी ,नीरजा ,मैरी कॉम ,बैंडिट क्वीन , नेताजी सुभाष चंद्र बोस: द फॉरगॉटन हीरो , सरबजीत , मांझी: द माउंटेन मैन , मांझी जैसी फिल्मो ने सफलता को छुआ है लेकिन अगर राजनीत में रहे किसी इंसान की बायोपिक अभी तक बॉलीवुड ने बनाई है तो बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप ही साबित हुई है। फिर चाहे ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ ‘ठाकरे’ थलाइवी जैसी फिल्म अच्छा नहीं कर पाई। राजनीतिक इंसान को समझना बड़ा ही मुश्किल काम होता है।

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शुक्रवार, 19 जनवरी को सिनेमाघरों में रिलीज हुई पंकज त्रिपाठी स्टारर फिल्म ‘मैं अटल हूं’ की ओपनिंग काफी कमजोर रही। फिल्म ने पहले दिन मात्र 1 करोड़ रुपए का कलेक्शन किया। इसकी ओवरऑल हिंदी ऑक्यूपेंसी 10 परसेंट से भी कम रही। ‘मैं अटल हूं’, देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की बायोपिक है। थ‍िएटर में ऑडियंस ऑक्‍यूपेंसी भी 10% परसेंट से कम रही है। हालांकि, पंकज त्र‍िपाठी के एक्‍ट‍िंग की बड़ी तारीफ हो रही है, लेकिन कमाई के मामले में यह फिल्‍म चारों खाने चित हो गई है। उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड के कारण भी सिनेमाघर पहुंचने वाले दर्शकों की संख्‍या में भारी कमी आई है। रवि जाधव की इस फिल्‍म का बजट करीब 20 करोड़ रुपये है। ऐसे में यदि वीकेंड में फिल्‍म की कमाई रफ्तार नहीं पकड़ती है तो यह सीधे-सीधे फ्लॉप कही जाएगी।

साल 1977 में 21 महीने लंबी चली इमरजेंसी खत्म हुई थी. देश की राजनीति पर से अनिश्चित्ता के बादल छंटे. विपक्षी दल के नेता जो उस वक्त जेल गए, वो लोग साथ आए. जनता दल के नाम से पार्टी बनाई. चुनाव जीता और इंदिरा गांधी की सरकार को बाहर का रास्ता दिखाया. अब फिल्म का सीन क्या कहता है. जीत के बाद जनता दल के लोग हर्षोल्लास के साथ संसद परिसर के अंदर चले जाते हैं. उन सभी में से आगे अटल बिहारी वाजपेयी हैं. वो दीवारों को देखते हुए चल रहे हैं. एकाएक उनकी नज़र एक जगह रुकती है. दीवार पर मिट्टी के निशान से एक फ्रेम गढ़ा हुआ है. वहां कभी एक तस्वीर हुआ करती थी. पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की. अटल वहां किसी से पूछते हैं कि वो फोटो क्यों निकलवा दी. जवाब आता है कि वो तो आपके विपक्ष में थे ना. अटल बने पंकज त्रिपाठी कहते हैं, अटल बिहारी वाजपेयी, वो राजनेता जिनका विपक्ष भी मुरीद था.उनका किरदार निभाना अपने करियर को रिस्क में डालने वाला काम हो सकता था लेकिन पंकज त्रिपाठी ने ये किया और शिद्दत से वाजपेयी जी का किरदार निभाया. ट्रेलर देखकर भले ऐसा लगा रहा था कि वो पंकज त्रिपाठी ज्यादा लग रहे हैं लेकिन फिल्म देख लगा कि वो पंकज त्रिपाठी अटल जी ज्यादा लग रहे हैं

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कहानी अटल जी की जिंदगी की

ये अटल जी की जिंदगी की कहानी है.उनके बचपन से लेकर पीएम बनने तक का सफर लेकिन सिर्फ राजनीतिक सफर नहीं, निजी जीवन भी.एक इंसान के तौर पर,एक कवि के तौर पर, एक दोस्त के तौर पर कैसे थे अटल जी. ये फिल्म इस कहानी को दिखाती है लेकिन कितनी ही चीज़ इसमें पीछे छूट जाती है सुरु के हाफ में तो बहुत ही स्लो है और बाद में कहानी भागती नज़र आती है।

कैसी है फिल्म
अटल जी जैसे राजनेता के बारे में आज की जेनरेशन को शायद कम पता होगा ऐसे में ये फिल्म उनके लिए एक दस्तावेज हो सकती है हालांकि उन्हें जानने वालों के लिए शायद इसमें कुछ नया नहीं होगा. कुछ कम ही होगा लेकिन तब भी ये फिल्म देखने लायक है.अटल जी की कहानी को अच्छे से दिखाया गया है.उनके जीवन के कई पहलुओं को छुआ गया है. इतिहास की कई अहम घटनाओं के जरिए अटली जी की कहानी सधे हुए तरीक से दिखाने की अच्छी कोशिश की गई है.

एक्टिंग में पंकज त्रिपाठी

पंकज त्रिपाठी इस फिल्म की जान हैं. उन्होंने अच्छा काम किया है. अटल जी जैसी शख्सियत का किरदार निभाना काफी चुनौतीपूर्ण है.थोड़ा सा गड़बड़ हुई कि उनके चाहने वाले हल्ला कर देंगे. अटल जी का हर अंदाज पंकज त्रिपाठी ने सधे हुए तरीके से पेश किया है. उनकी कविताएं हों या उनका भाषण. एक छोटी सी बच्ची जब लंच के लिए बुलाती है तो किस तरह से वो उसे पहले मना करते हैं और फिर हां. ये सीन कमाल का है. पंकज त्रिपाठी के अलावा पीयूष मिश्रा इम्प्रेस करते हैं.जो अटल जी के पिता के किरदार में हैं. इसके लिए सपोर्टिंग कास्ट ठीक ठाक है. रवि जाधव का डायरेक्शन ठीक है.उन्होंने फिल्म को दिलचस्प बनाने की पूरी कोशिश की है पर कई जगह चूक भी गए हैं.

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अटल जी के बारे में जानने वालों को लगेगा कि ये सब उन्हें पता था वैसे भी इतनी बड़ी शख्सित की जिंदगी को एक फिल्म में समेटना मुश्किल है लेकिन ये कोशिश अच्छी है. कुल मिलाकर ये फिल्म देखने लायक है परिवार के साथ देखी जा सकती है। अगर वीकेंड में अच्छा रिस्पांस नहीं मिला तो फिल्म फ्लॉप भी हो सकती है। पंकज त्रिपाठी ने इस फिल्म को लेकर कई बड़े बीजेपी के नेताओ का भी आशीर्वाद लिया है जैसे नितिन गडगरी से वो मिलते नज़र आये। आज जो फिल्मे बॉलीवुड बना रहा है वो पार्टी लाइन पर ज्यादा चल पड़ा है ना की अच्छे कांसेप्ट को लेकर फिल्म बनाये। अभी हॉल ही में कंगना रनोट और अक्षयकुमार की कितनी ही फिल्मे फ्लॉप हो चुकी है। दर्शक अच्छी फिल्म देखने को आज तरस जाते है।

संजीव शर्मा
एडिटर इन चीफ

 

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