समान नागरिक संहिता लागू करने में उत्तराखंड की पहल , लिविंग रिलेशनशिप पर कानून , महिलाओ के अधिकार की सुरक्षा -डिजायर न्यूज़
समान नागरिक संहिता लागू करने में उत्तराखंड की पहल , लिविंग रिलेशनशिप पर कानून , महिलाओ के अधिकार की सुरक्षा -डिजायर न्यूज़
डिजायर न्यूज़ नई दिल्ली – लंबी कसरत के बाद सरकार ने मंगलवार को विधानसभा में समान नागरिक संहिता उत्तराखंड-2024 विधेयक पेश कर दिया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा सदन में पेश विधेयक में 392 धाराएं हैं जिनमें से केवल उत्तराधिकार से संबंधित धाराओं की संख्या 328 है। आज उत्तराखंड विधानसभा में इस पर बहस चल रही है , बीजेपी के पास पूर्ण बहुमत है 47 का आकड़ा है और निर्दलयी विधायको का भी सपोर्ट है।
बहु विवाह, बाल विवाह, तलाक, इद्दत, हलाला जैसी प्रथाएं शामिल हैं। संहिता के लागू होने पर किसी की धार्मिक स्वतंत्रता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। विधेयक में महिलाओं को संपत्ति में समान अधिकार के प्रविधान किए गए हैं।
समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए प्रस्तुत विधेयक के दायरे में समूचे उत्तराखंड को लिया गया है। कानून बनने पर यह उत्तराखंड के उन निवासियों पर भी लागू होगा, जो राज्य से बाहर रह रहे हैं। राज्य में कम से कम एक वर्ष निवास करने वाले अथवा राज्य व केंद्र की योजनाओं का लाभ लेने वालों पर भी यह कानून लागू होगा। अनुसूचित जनजातियों और भारत के संविधान की धारा-21 में संरक्षित समूहों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है।
सभी धर्मों में विवाह के लिए समान उम्र का प्रविधान
विधेयक का पहला खंड विवाह और विवाह-विच्छेद पर केंद्रित है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि बहु विवाह व बाल विवाह अमान्य होंगे। विवाह के समय लड़की की न्यूनतम आयु 18 व लड़के की न्यूनतम आयु 21 वर्ष होनी चाहिए। साथ ही विवाह के पक्षकार निषेध रिश्तेदारी की डिग्रियों के भीतर न आते हों। इस डिग्री में सगे रिश्तेदारों से संबंध निषेध किए गए हैं। यदि इन डिग्रियों के भीतर होते हों तो दोनों पक्षों में से किसी एक की रूढ़ी या प्रथा उन दोनों के मध्य विवाह को अनुमन्य करती हो, लेकिन ये रूढ़ी या प्रथा लोक नीति व नैतिकता के विपरीत नहीं होनी चाहिए।
संहिता में विवाह और विवाह विच्छेद का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। 26 मार्च 2010 के बाद हुए विवाह का पंजीकरण अनिवार्य होगा। पंजीकरण न कराने की स्थिति में भी विवाह मान्य रहेगा, लेकिन पंजीकरण न कराने पर दंड दिया जाएगा। यह दंड अधिकतम तीन माह तक का कारावास और अधिकतम 25 हजार तक का जुर्माना होगा।
सभी धर्मों में विवाह के लिए समान उम्र का प्रविधान
विधेयक का पहला खंड विवाह और विवाह-विच्छेद पर केंद्रित है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि बहु विवाह व बाल विवाह अमान्य होंगे। विवाह के समय लड़की की न्यूनतम आयु 18 व लड़के की न्यूनतम आयु 21 वर्ष होनी चाहिए। साथ ही विवाह के पक्षकार निषेध रिश्तेदारी की डिग्रियों के भीतर न आते हों। इस डिग्री में सगे रिश्तेदारों से संबंध निषेध किए गए हैं। यदि इन डिग्रियों के भीतर होते हों तो दोनों पक्षों में से किसी एक की रूढ़ी या प्रथा उन दोनों के मध्य विवाह को अनुमन्य करती हो, लेकिन ये रूढ़ी या प्रथा लोक नीति व नैतिकता के विपरीत नहीं होनी चाहिए।
संहिता में विवाह और विवाह विच्छेद का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। 26 मार्च 2010 के बाद हुए विवाह का पंजीकरण अनिवार्य होगा। पंजीकरण न कराने की स्थिति में भी विवाह मान्य रहेगा, लेकिन पंजीकरण न कराने पर दंड दिया जाएगा। यह दंड अधिकतम तीन माह तक का कारावास और अधिकतम 25 हजार तक का जुर्माना होगा।
विधिक प्रक्रिया से ही होगा विवाह-विच्छेद
सभी धर्मों के लिए दांपत्य अधिकारों का उल्लेख भी विधेयक में किया गया है। साथ ही न्यायिक रूप से अलगाव के विषय में व्यवस्था की गई है। यह भी बताया गया है कि किस स्थिति में विवाह को शून्य विवाह माना जाएगा। विधेयक में विवाह-विच्छेद के संबंध में विस्तार से प्रकाश डाला गया है। कोई भी इस संहिता में उल्लिखित प्रविधानों के अलावा किसी अन्य प्रकार से विवाह विच्छेद नहीं कर सकेगा। इस व्यवस्था से एकतरफा मनमाने तलाक की प्रथा पर रोक लग जाएगी।
छह माह से तीन साल तक का दंड
विवाह-विच्छेद के संबंध में याचिका लंबित रहने पर भरण-पोषण और बच्चों की अभिरक्षा के संबंध में प्रविधान किए गए हैं। संहिता में उल्लिखित धाराओं का उल्लंघन करने पर छह माह तक का कारावास व 50 हजार रुपये जुर्माने की व्यवस्था की गई है। विवाह-विच्छेद के मामलों में तीन वर्ष तक का कारावास होगा। पुनर्विवाह के लिए यदि कोई तय नियम का उल्लंघन करता है तो वह एक लाख रुपये तक का जुर्माना व छह माह तक के कारावास का भागी होगा।
उत्तराधिकार में महिलाओं को समान अधिकार
विधेयक के दूसरे खंड में उत्तराधिकार का विषय समाहित है। उत्तराधिकार के सामान्य नियम और तरीकों को विधेयक में स्पष्ट किया गया है। इसमें संपत्ति में सभी धर्मों की महिलाओं को समान अधिकार दिया गया है। यह स्पष्ट किया गया है कि सभी जीवित बच्चे, पुत्र अथवा पुत्री संपत्ति में बराबर के अधिकारी होंगे।
यदि कोई व्यक्ति अपना कोई इच्छापत्र (वसीयत) नहीं बनाता है और उसकी कोई संतान अथवा पत्नी नहीं है तो वहां उत्तराधिकार के लिए रिश्तेदारों को प्राथमिकता दी जाएगी। इसके लिए भी विधेयक में सूची निर्धारित की गई है। विधेयक में उत्तराधिकार के संबंध में व्यापक प्रविधान किए गए हैं। इसमें कुल 328 धाराएं रखी गई हैं।
विधेयक का तीसरा खंड सहवासी “लिव इन रिलेशनशिप “ पर केंद्रित किया गया है। इसमें लिव इन रिलेशनशिप के लिए पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। यह स्पष्ट किया गया है कि इस अवधि में पैदा होने वाला बच्चा वैध संतान माना जाएगा। उसे वह सभी अधिकार प्राप्त होंगे, जो वैध संतान को प्राप्त होते हैं। इसमें निषेध डिग्री के भीतर वर्णित संबंधों को लिव इन में रहने की अनुमति नहीं दी जाएगी। यह उन पर लागू नहीं होगा, जिनकी रूढ़ी और प्रथा ऐसे संबंधों में उनके विवाह की अनुमति देते हों।
यद्यपि ऐसी रूढ़ी और प्रथा लोकनीति और नैतिकता के विपरीत नहीं होनी चाहिए। युगल में से किसी एक पक्ष के नाबालिग होने अथवा विवाहित होने की स्थिति में लिव इन की अनुमति नहीं दी जाएगी। लिव इन संबंध कोई भी पक्ष समाप्त कर सकता है। यद्यपि, इस स्थिति में उसे संंबंधित क्षेत्र के निबंधक को जानकारी उपलब्ध करानी होगी। साथ ही दूसरे सहवासी को भी इसकी जानकारी देनी होगी।
सजा व जुर्माना, दोनों का प्रविधान
लिव इन में पंजीकरण न कराने पर अधिकतम तीन माह का कारावास और 10 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रविधान है। वहीं गलत जानकारी देने अथवा नोटिस देने के बाद भी जानकारी न देने पर अधिकतम छह माह के कारावास अथवा अधिकतम 25 हजार रुपये जुर्माना अथवा दोनों हो सकते हैं। यदि कोई पुरुष महिला सहवासी को छोड़ता है तो महिला सहवासी उससे भरण पोषण की मांग कर सकती है। विधेयक में लिव इन के लिए अलग से नियम बनाने के लिए राज्य सरकार को अधिकृत किया गया है।
उत्तराखंड विधानसभा में जैसे ही विधेयक पेश हुआ, मुस्लिम संगठनों ने इसका विरोध किया हालांकि विधेयक पर चर्चा अभी बाकी है, जिसके बाद इसे पारित किया जाएगा. आइए जानते हैं कि यूसीसी से मुसलमानों को दिक्कतें क्या हैं?
यूसीसी से मुसलमानों को क्या दिक्कतें
भारत में अलग-अलग धर्मों के अपने-अपने कानून हैं. मुस्लिमों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बनाया गया है. अभी मुस्लिमों पर मुस्लिम पर्सनल (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट 1937 लागू होता है. अगर समान नागरिक संहिता लागू होती है तो ये कानून खत्म कर एक सामान्य कानून का पालन करना होगा.
शादी की उम्र– भारत में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल रखी गई है जबकि मुस्लिम पर्सनल लॉ में लड़की के लिए 15 साल के बाद शादी की इजाजत दी गई है. भारत में बाल विवाह निषेध अधिनियम बनाया गया है, जिसके चलते नाबालिग लड़कियों की शादी अपराध के अंतर्गत आती है. इस तरह ये मुस्लिम पर्सनल लॉ को पूरे तरीके से चुनौती देता है. यूसीसी आने के बाद शादी का रजिस्ट्रेशन जरूरी होगा.
तलाक- इद्दत– महिला की दूसरी शादी- मुसलमान तलाक को लेकर शरिया कानून के अनुसार चलते हैं. इतना ही नहीं मुसलमानों को पर्सनल लॉ में छूट मिलती है जो कि अन्य धर्मों के स्पेशल मैरिज एक्ट से अलग है. इसके अलावा तलाक लेने के मामले में अगर कोई शख्स कानून तोड़ता है तो उसके लिए तीन साल की जेल का प्रावधान होगा. तलाक पर पुरुषों और महिलाओं का बराबरी का अधिकार होगा. अगर महिला दोबारा शादी करना चाहती है तो उस पर किसी भी तरह की कोई शर्त नहीं होगी. इसके अलावा इद्दत पर भी पूरी तरह से रोक होगी.
इद्दत एक तरह का वेटिंग पीरियड होता है, जिसे मुस्लिम महिला को अपने पति की मौत या तलाक के बाद पूरा करना होता है. इसमें तलाक के लिए 3 महीने 10 दिन की इद्दत होती है और अगर पति की मौत हो जाए तो ये टाइम पीरियड 4 महीने 10 दिन का होता है. इद्दत के दौरान, महिला को किसी गैर मर्द से मिलने की इजाजत नहीं होती है और वो पूरे तरीके से परदे में रहती है.
गुजारा-भत्ता: तलाक के बाद महिला को गुजारा-भत्ता के मामले में मुसलमानों में अलग नियम है. इसके तहत मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को इद्दत की अवधि (तलाक के तीन महीने 10 दिन) तक ही गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य है. वहीं, भारतीय कानून के तहत महिला तलाक के बाद हमेशा के लिए (जब तक दूसरी शादी नहीं करती) गुजारा भत्ता पाने की हकदार है.
संपत्ति का बंटवारा– मुस्लिम महिलाओं में संपत्ति बंटवारे का हिसाब-किताब अलग है. जिस तरह हिंदुओं का विरासत कानून कहता है कि हिंदुओं में बेटा और बेटी को संपत्ति में बराबर का हक है, इस तरह मुस्लिमों में नहीं है. यही वजह है कि मुसलमानों को इस मामले में हस्तक्षेप का डर है.
बहुविवाह– बहुविवाह यानी एक पत्नी के होते हुए अन्य शादियां करना. मुसलमानों में चार शादियों की इजाजत है हालांकि भारतीय मुसलमानों में एक से ज्यादा शादी का चलन हिंदुओं या दूसरे धर्मों की तरह ही है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के डेटा के अनुसार, 2019-21 के दौरान 1.9 प्रतिशत महिलाओं ने माना कि उनके पति की दूसरी पत्नियां हैं. इससे पता चलता है कि मुसलमान चार शादियों के पक्षधर नहीं है, लेकिन वो शरीयत के साथ छेड़छाड़ नहीं चाहते हैं, यही वजह है कि ये यूसीसी के खिलाफ हैं.
गोद– इस्लाम में किसी शख्स को गोद लेने की इजाजत नहीं है. अगर भारत की बात करें तो यहां गोद लेने का अधिकार है. मुस्लिम पर्सनल लॉ के कारण मुसलमानों को इस कानून से बाहर रखा गया है. ऐसा होने के चलते कोई बेऔलाद शख्स किसी बच्चे को गोद नहीं ले सकता है.
बच्चे की कस्टडी– मुसलमानों पर लागू होने वाले शरीयत कानून के अनुसार, पिता को लड़का या लड़की दोनों का नेचुरल गार्जियन माना जाता है. मां की बात करें तो मां अपने बेटे की 7 साल की उम्र पूरे होने तक की कस्टडी की हकदार है जबकि बेटी के लिए मां तब तक की कस्टडी की हकदार है, जब तक उसकी बेटी यौवन न प्राप्त कर ले.
संजीव शर्मा
एडिटर इन चीफ