सरकार से बड़ा कोई नहीं -खिलाड़ियों की हार या जीत ?
डिजायर न्यूज़ नई दिल्ली- आखिर जो गलती से एएनआई न्यूज़ एजेंसी ने कुछ समय पहले ट्वीट किया था कि दिल्ली पुलिस को बृजभूषण शरण के खिलाफ कोई खास सबूत नहीं मिले है और जल्दी ही दिल्ली पुलिस क्लोज़र रिपोर्ट दायर कर सकती है , लेकिन दिल्ली पुलिस ने री ट्वीट करके कहा ऐसा कुछ नहीं है ये गलत न्यूज़ है और कुछ ही देर में अपने ट्वीट को डिलीट कर दिया। पहलवानो के चार महीने के धरने के बाद भी आज वो वही के वही खड़े है। दिल्ली पुलिस ने आज करीब 1000 पन्नो की क्लोज़र रिपोर्ट कोर्ट के सामने पेश कर दी पोक्सो के केस में। एक बात तो सही साबित हो गई की जब पहलवान खेल मंत्री अनुराग ठाकुर से मिले थे तो उनको आश्वासन दिया गया था कि 15 तारीख से पहले पुलिस अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सोप देगी। अनुराग ठाकुर ना होम मिनिस्टर है और ना ही लॉ मिनिस्टर है पर जो उन्होंने कहाँ वो सही साबित हो गया की 15 को ही रिपोर्ट पुलिस ने दायर कर दी।
अगर खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के कहने से पुलिस चार्ज शीट दायर कर सकती है तो क्या खिलाड़ियों ने जब पुलिस को और खेल मंत्रालय को अपनी शिकायत दी थी तब एफ आई आर क्यों नहीं दर्ज की गयी ? क्या सरकार नहीं चाहती थी की योन शोषण का ये मामला कोर्ट जाये ? क्यों सुप्रीम कोर्ट के कहने पर एफ आई आर दर्ज की गई ? सरकार जो चाहे कर सकती है ये साबित हो ही गया है। ऐसा बृजभूषण शरण सिंह के केस में तो लगता ही है। खिलाडी अब आगे क्या रणनीति अपनाते है इसके बारे में तो आने वाला समय ही बताएगा।
पोक्सो एक्ट क्या है
पॉक्सो यानी प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट. इस कानून को 2012 में लाया गया था. ये बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन शोषण को अपराध बनाता है. ये कानून 18 साल से कम उम्र के लड़के और लड़कियों, दोनों पर लागू होता है. यह कानून बच्चों को यौन अपराधों से संरक्षण प्रदान करता है। अधिनियम 19 जून 2012 को अधिनियमित किया गया था। इसे 14 नवंबर 2012 को लागू किया गया था। यह अधिनियम बच्चों को यौन हिंसा, यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से बचाने और उनके हितों की रक्षा के लिए बनाया गया था। नाबालिग बच्चों को सेक्सुअल असॉल्ट, सेक्सुअल हैरेसमेंट और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से प्रोटेक्ट किया गया है. 2012 में बने इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है। इस एक्ट में कुल 46 धाराएं हैं। पहली बार दोषी पाए जाने पर 5 साल की कैद होगी। हालाँकि, आगे की सजा पर, जेल का समय 7 साल तक प्लस जुर्माना हो सकता है। अधिनियम की धारा 6 में POCSO अधिनियम के तहत झूठी शिकायत दर्ज करने की सजा दी गई है। सजा: 6 महीने तक कारावास या जुर्माना या दोनों लगाए जा सकते है।
नाबालिग खिलाडी के योन शोषण में कौन कौन दोषी है ? क्या कहती है धारा 19
विनेश फोगट ने अपने कई इंटरव्यू में कहाँ है कि उसने देश के प्रधानमंत्री को इसके बारे में हल्का सा बताया था और उन्होंने आश्वासन दिया था की मंत्रालय से कोई उनसे बात करेगा , क्या जब इन लोगो के पास ये जानकारी थी तो इन्होने पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध की शीघ्र और उचित रिपोर्टिंग की ? अत्यंत महत्वपूर्ण है धारा 19(1) के अनुसार कोई भी व्यक्ति (बच्चे सहित), जिसे इस बात की आशंका है कि इस अधिनियम के तहत अपराध किए जाने की संभावना है या उसे यह जानकारी है कि ऐसा अपराध किया गया है, वह इस तरह की जानकारी निम्नलिखित को प्रदान करेगा जिसमें विशेष किशोर पुलिस इकाई या स्थानीय पुलिस पर किसी ने भी इस जिम्मेदारी को नहीं निभाया।
क्या कहती है पोक्सो की धारा 21
यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012; धारा 19(1), 21 – ज्ञान के बावजूद नाबालिग बच्चे के खिलाफ यौन हमले की सूचना न देना एक गंभीर अपराध है और अक्सर यह यौन हमले के अपराध के अपराधियों को बचाने का प्रयास है – पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध का कमीशन की शीघ्र और उचित रिपोर्टिंग अत्यंत महत्वपूर्ण है और हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि इसके तहत किसी भी अपराध के बारे में जानने में इसकी विफलता अधिनियम के उद्देश्य और लक्ष्य को विफल कर देगी। अगर हम बात करे बृजभूषण के केस की तो ना ही खेल मंत्रालय ने पुलिस को कोई जानकारी दी , जबकि सब से पहले उन्हे ही पता चला था। बाद में जब पुलिस ने इंवेस्टगेशन की तब जाकर अपनी रिपोर्ट सोपी गई है। कोई व्यक्ति जो धारा 19 की उपधारा (1) या धारा 20 के अधीन किसी अपराध के किए जाने की रिपोर्ट करने में विफल रहता है या जो धारा 19 की उपधारा 2 के अधीन ऐसे अपराध को अभिलिखित करने में विफल रहता है, वह किसी भी प्रकार के कारावास से, जो छह मास तक का हो सकेगा या जुर्माने से या दोनों से, दण्डनीय होगा । पर इस केस में विश्व कुश्ती महासंघ एक संस्था है , उसने भी धारा 19 और 21 का सीधा सीधा उलघन किया है। ऐसा देखने में लगता है।
अब क्या होगा पोक्सो का क्या बृजभूषण को बड़ी राहत है ?
दिल्ली पुलिस ने भले ही क्लोज़र रिपोर्ट दायर कर दी हो लेकिन रिपोर्ट सही है या नहीं इसका निर्णय कोर्ट ही लेगी अगर मामला पोक्सो का नहीं बनता तो बृजभूषण शरण को इस केस को ख़तम करने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ सकता है। पोक्सो केस में सब से जरुरी है नाबालिग की पहचान छुप्पा कर रखना , पर इस केस में तो नाबालिग के चाचा और पिता ने खुद आकर मीडिया को इंटरव्यू तक दे डाले जो की गलत है। बृजभूषण शरण ने कभी भी इस केस को सीरियस नहीं लिया वो हमेशा मीडिया के सामने आकर खिलाड़ियों का मज़ाक उड़ाते दिखाई दिये। अब कोर्ट इस क्लोज़र रिपोर्ट में क्या सज्ञान लेती है ये तो आने वाला वक़्त ही बता सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन्स का दिया हवाला
इस पर दिल्ली पुलिस ने साफ किया कि जिन धाराओं के तहत सिंह पर आरोप लगाया गया है, उनमें अधिकतम पांच साल की सजा का प्रावधान है। पुलिस ने बताया कि यही एक कारण था उन्होंने सिंह को गिरफ्तार नहीं किया। मामले से जुड़े अधिकारी ने कहा कि हमने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन किया है। सुप्रीम कोर्ट ने अर्नेश कुमार बनाम बिहार सरकार मामले में विशेष रूप से सात साल से कम सजा के अपराध में गिरफ्तारी को लेकर निर्देश दिया था। कोर्ट ने कहा कि था कि जिन मामलों में 7 साल से कम की सजा है उनमें पुलिस तत्काल गिरफ्तारी नहीं करेगी। अगर आरोपी जांच में सहयोग नहीं कर रहा है तो गिरफ्तारी की जा सकती है। जांच अधिकारी ने बताया कि इस लिए बृजभूषण शरण सिंह और विनोद तोमर के खिलाफ चार्जशीट को उनकी गिरफ्तारी के बिना दायर किया गया है। आरोपी बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आईपीसी की धारा 354, 354ए, 354डी के तहत और आरोपी विनोद तोमर के खिलाफ आईपीसी की धारा 109/354/354ए/506 के तहत आरोप पत्र दायर किया है। जांच के दौरान पुलिस ने करीब 200 लोगों से पूछताछ की थी। पुलिस बृजभूषण सिंह के गृहनगर गोंडा भी गई थी। साथ ही कथित घटनाएं होने वाले दिन उनके ठिकाने के बारे में लोगों से पूछताछ की थी। सिंह से भी दो बार पूछताछ की गई। एक पहलवान को भी जांच के लिए डब्ल्यूएफआई कार्यालय ले जाया गया। जबकि उस समय बताते है की बृजभूषण शरण वही थे।
एडिटर इन चीफ