दिल्ली सरकार ने लिया कृत्रिम वर्षा करवाने की स्टडी का फैसला , 13 करोड़ में खुद करवाएगी स्टडी – डिजायर न्यूज़
दिल्ली सरकार ने लिया कृत्रिम वर्षा करवाने की स्टडी का फैसला , 13 करोड़ में खुद करवाएगी स्टडी – डिजायर न्यूज़
डिजायर न्यूज़ नई दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट की फटकार कहे या दिल्ली सरकार का निर्णय कहे आखिर दिल्ली के पर्यावरण मंत्री ने कृत्रिम वर्षा और पोल्लुशन से रिलेटेड स्टडी के लिए आर्टिफिशियल तरीके से बारिश करवाने के लिए पायलट स्टडी का 13 करोड़ रुपए का खर्च खुद उठाने को तैयार हो गई है. ये स्टडी दो चरण में की जाएगी लेकिन उस से पहले इस स्टडी के लिए सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार हलफनामा दाखिल करके अपनी मंशा कोर्ट को बताएगी। कोर्ट का केसा रुख रहता है ये सब शुक्रवार को पता चलेगा।
सूत्रों के हवाले से , कृत्रिम वर्षा कराने के लिए क्लाउड सीडिंग एक प्रकार से मौसम में बदलाव का वैज्ञानिक तरीका है. इसके तहत आर्टिफिशियल तरीके से बारिश करवाई जाती है. कृतिम बारिश भारत के लिए कोई नई बात नहीं है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी के मुताबिक, भारत में सबसे पहले कृतिम बारिश की कोशिश 1951 में की गई थी। दिल्ली की केजरीवाल सरकार कृत्रिम बारिश की दो चरणों में होने वाली पायलट स्टडी का 13 करोड़ रुपए का खर्च खुद उठाने को तैयार हो गई है. दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने दिल्ली के मुख्य सचिव को निर्देश दिए हैं कि सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को होने वाली सुनवाई से पहले अदालत में हलफनामे के जरिए प्रस्ताव दें.
मुख्य सचिव को यह भी कहा गया है कि वह अदालत से केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार से जरूरी मंजूरी 15 नवंबर तक देने के लिए भी कहें ताकि 20 और 21 नवंबर को कृत्रिम बारिश के पहले चरण की पायलट स्टडी हो सके. दिल्ली में 20 और 21 नवंबर को पहली बार कृत्रिम बारिश हो सकती है। इन दो दिनों में राजधानी में हल्के बादलों की संभावना भी है। इसलिए ट्रायल की तैयारियां इन दो दिनों के लिए की जा रही हैं। इस बारिश को लेकर बुधवार को आईआईटी कानपुर के साथ पर्यावरण मंत्री गोपाल राय व अन्य अधिकारियों ने मीटिंग की। मीटिंग के बाद गोपाल राय ने बताया कि नवंबर की शुरुआत से ही राजधानी में हवाओं की स्पीड काफी कम है। इस समय सबसे सख्त पाबंदियां ग्रैप-4 लागू हैं। लेकिन अगर हवाओं की गति इसी तरह की रहती है तो अगले एक हफ्ते या इससे भी अधिक समय तक यही स्थिति बनी रह सकती है। इन स्थितियों में कृत्रिम बारिश को लेकर बुधवार को आईआईटी कानपुर के साथ हमने दूसरी बैठक की। इस बारे में पहली मीटिंग 12 सितंबर को हुई थी। उस मीटिंग में हमने कहा था कि आपने जुलाई में मॉनसून के दौरान कृत्रिम बारिश का ट्रायल किया है, आप हमें प्रस्ताव दो कि दिल्ली में सर्दियों के दौरान कृत्रिम बारिश किस तरह करवाई जा सकती है? इसी को लेकर दूसरी मीटिंग बुलाई गई थी।
कृत्रिम बारिश केमिकल एजेंट्स जैसे सिल्वर आयोडाईड, ड्राई आइस और साधारण नमक को बादलों में छोड़कर करवाई जाती हैं। इसे क्लाउड सीडिंग कहते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, इस प्रक्रिया के लिए प्राकृतिक बादलों का मौजूद होना सबसे जरूरी है। नवंबर में राजधानी में बादलों की मौजूदगी सबसे कम रहती है। इसकी वजह से क्लाउड सीडिंग में समस्या रह सकती है।अभी तक इसके अधिक प्रमाण नहीं हैं कि इस तरह की बारिश प्रदूषण कितना कम करेगी। इस तरह की बारिश करवाने में एक बार में करीब 10 से 15 लाख रुपये का खर्च आता है। यह प्रयोग अब तक करीब 53 देशों में हो चुका है। कानपुर में इस तरह के कुछ ट्रायल हुए हैं, जो छोटे एयरक्राफ्ट से किए गए। इनमें से कुछ में बारिश हुई तो कुछ में हल्की सी बूंदाबांदी। इससे पहले 2019 में भी कृत्रिम बारिश की तैयारियां की गई थीं। लेकिन बादल की मौजूदगी के अभाव और इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन की मंजूरी भी मुद्दा रही।
कुदरत के विरुद्ध जाने के समय में कई विभागों से इसकी परमिशन लेनी पड़ती है , साथ साथ मौसम का मिज़ाज़ और हवा का रुख भी अहम् भूमिका रखता है हवा के विरुद्ध जाकर ये प्रयोग करना पड़ता है वरना हवा के रुख से दिल्ली में की गई वेर्षा मेरठ में हो सकती है। कृत्रिम बारिश कराने को लेकर दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय, राजस्व मंत्री आतिशी और अन्य अधिकारियों ने बुधवार को आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों के साथ बैठक की। इसके लिए विमानों को बादलों के बीच से गुजारा जाता है और उनसे सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस और क्लोराइड छोड़े जाते हैं. इससे बादलों में पानी की बूंदें जम जाती हैं. यही पानी की बूंदें फिर बारिश बनकर जमीन पर गिरती हैं. हालांकि, यह तभी संभव होता है, जब वायुमंडल में पहले से पर्याप्त मात्रा में बादल मौजूद हों और हवा में नमी हो.
दिल्ली की हवा और वातावरण का स्तर अभी भी दम घोटु बना हुआ है , शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट फिर सुनवाई कर रहा है और दिल्ली पंजाब , हरियाणा ,राजस्थान और उत्तरप्रदेश ने क्या क्या क़दम उठाये इन सब पर बहस होनी है। सभी सरकारों को ये आभास पहले से ही था कि इस समय पोल्लुशन की दिल्ली में हालत बहुत ख़राब होती है लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट सख्त नहीं होता तो सरकारे अभी भी सोती रहती। पिक्चर का श्रेय गूगल को जाता है .
संजीव शर्मा
एडिटर इन चीफ