नई संसद का पहला दिन और महिला आरक्षण बिल का पेश होना एक ऐतिहासिक कदम – डिजायर न्यूज़

नई संसद का पहला दिन और महिला आरक्षण बिल का पेश होना एक ऐतिहासिक कदम – डिजायर न्यूज़

डिजायर न्यूज़ नई दिल्ली – नई संसद का पहला दिन और महिला आरक्षण बिल का पेश होना हमेशा इतिहास में याद रखा जाएगा। भले ही 27 साल से ये विधयेक कई बार आया पर सहमति ना बनने से ठंडे बस्ते में चला गया। आज हर पार्टी अपने अपने स्तर पर कह रही है कि हम इसे लाना चाह रहे थे पर सहमति नहीं बनी। पर मोदी सरकार ने मास्टर स्तोक लगा कर करोडो देश की महिलाओ को एक आश्वासन दे दिया की आने वाले समय में वो राजनीत में चाहे संसद हो या विधानपालिका उनको 33 परसेंट आरक्षण मिलेगा। लेकिन अभी इसको लागु करने में कुछ ऐसे रोड़े है जिनको ठीक करते करते सालो लग जायेगे। सब से पहले तो जनगणना एक बहुत बड़ा मुद्दा है , दूसरा परसीमन। इन सब को देखते हुए लगता है शायद 2029 के इलेक्शन में इसे लागू किया जा सके।

महिला आरक्षण बिल -2023

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने नई संसद में पहला विधेयक महिला आरक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए पेश किया है। विपक्ष इसकी सराहना तो कर रहा है, लेकिन अपनी शर्तों के साथ। दरअसल, विपक्ष नारी शक्ति वंदन विधेयक के मसौदे में दो-तीन शर्तों को लेकर मोदी सरकार की मंशा पर सवाल उठा रहा है। दिल्ली के सत्ताधारी दल आम आदमी पार्टी ने तो सीधा-सीधा आरोप ही मढ़ दिया कि मोदी सरकार दरअसल महिलाओं को आरक्षण नहीं उन्हें धोखा देने के लिए यह बिल लाई है। वहीं, कांग्रेस पार्टी ने भी एक एक्स पोस्ट में बताया है कि किस तरह विधेयक की शर्तों के मुताबिक 2024 के लोकसभा चुनावों में महिला आरक्षण की प्रावधान लागू नहीं हो पाएगा। कही कांग्रेस इसका शर्तो के साथ सपोर्ट कर रही है ,तो बहुजन समाजवादी पार्टी की लीडर माया वती कह रही है कि महिलाओ को बराबर का अधिकार मिले यानि 50 पर्सेंट आरक्षण हो महिलाओ के लिए। विपक्ष के पास विरोध करने का कोई ठोस कारण नहीं मिलने पर उनका कहना है कि अभी सालो लग जायेगे इस आरक्षण को लागू करने में।128वां संविधान संशोधन का प्रस्ताव

दरअसल, विधेयक का पांचवां प्रावधान कहता है, ‘संविधान के अनुच्छेद 334 के बाद यह अनुच्छेद जोड़ा जाएगा- 334ए(1)। इस भाग या भाग VIII के पूर्ववर्ती प्रावधानों में किसी बात के होते हुए भी, लोकसभा में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने से संबंधित संविधान के प्रावधान, किसी राज्य की विधानसभा और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा, इस प्रयोजन के लिए परिसीमन का प्रयोग किए जाने के बाद लागू होंगे। संविधान (128वां संशोधन) अधिनियम, 2023 के प्रारंभ होने के बाद होने वाली पहली जनगणना के प्रासंगिक आंकड़े प्रकाशित होने के बाद महिला आरक्षण लागू होगा और पंद्रह वर्ष की अवधि की समाप्ति पर बंद हो जाएगा। इस प्रावधान के मुताबिक, महिलाओं के लिए आरक्षण नई जनगणना के बाद परिसीमन होगा, उसके बाद महिला आरक्षण लागू किया जा सकेगा। मतलब महिला आरक्षण के लागू होने की राह में अब भी दो रोड़े हैं- पहला जनगणना और दूसरा परिसीमन। इससे संकेत मिलता है कि महिला आरक्षण का प्रावधान 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद ही लागू हो पाएगा। इसमें कहा गया है कि आरक्षण शुरू होने के 15 साल बाद प्रावधान प्रभावी होना बंद हो जाएंगे। विपक्ष को इस बात पर भी ऐतराज है कि आखिर महिला आरक्षण के लिए 15 वर्ष की अवधि ही क्यों सीमित रखी गई है। नारी शक्ति वंदन विधेयक में यह भी कहा गया है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति/जनजाति आरक्षित सीटों में से एक-तिहाई सीटें भी महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। विधेयक के अनुसार, प्रत्येक परिसीमन प्रक्रिया के बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की अदला-बदली होगी।

महिला आरक्षण बिल -2023

आम आदमी पार्टी और कांग्रेस
बहरहाल, आम आदमी पार्टी की वरिष्ठ नेता आतिशी ने आरोप लगाया कि महिला आरक्षण विधेयक साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले महिलाओं को बेवकूफ बनाने वाला विधेयक है। उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को महिलाओं की भलाई और कल्याण में कोई दिलचस्पी नहीं है। उन्होंने कहा, ‘विधेयक के प्रावधानों को गौर से पढ़ने पर पता चलता है कि यह ‘महिला बेवकूफ बनाओ’ विधेयक है। विधेयक के अनुसार, परिसीमन प्रक्रिया शुरू होने के बाद आरक्षण लागू होगा और 15 वर्षों तक जारी रहेगा। विधेयक के अनुसार, प्रत्येक परिसीमन प्रक्रिया के बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की अदला-बदली। कांग्रेस पार्टी ने लगे हाथ कह दिया कि ये तो उनके ही प्रयासों का नतीजा है। पार्टी नेता जयराम रमेश ने कहा, कांग्रेस पार्टी लंबे समय से महिला आरक्षण को लागू करने की मांग करती रही है। राजीव गांधी ने 1989 के दौरान मई में पंचायतों और नगर पालिकाओं में महिलाओं के एक तिहाई आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक पेश किया था। वह विधेयक लोकसभा में पारित हो गया था, लेकिन सितंबर 1989 में राज्यसभा में पास नहीं हो सका।

पूर्व प्रधान मंत्री पी वी नरसिम्हा राव

अगर देखा जाये तो अप्रैल 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने पंचायतों और नगर पालिकाओं में महिलाओं के एक तिहाई आरक्षण यानी 33 परसेंट के लिए संविधान संशोधन विधेयक को फिर से पेश किया। दोनों विधेयक पारित हुए और कानून बन गए। आज पंचायतों और नगर पालिकाओं में 15 लाख से अधिक निर्वाचित महिला प्रतिनिधि हैं। यह संख्या 40 प्रतिशत के आसपास है।

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह

महिलाओं के लिए संसद और राज्यों की विधानसभाओं में एक तिहाई आरक्षण के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह संविधान संशोधन विधेयक लाए। विधेयक 9 मार्च 2010 को राज्यसभा में पारित हुआ। लेकिन लोकसभा में नहीं ले जाया जा सका। राज्यसभा में पेश/पारित किए गए विधेयक समाप्त नहीं होते हैं। कांग्रेस पार्टी पिछले नौ साल से मांग कर रही है कि महिला आरक्षण विधेयक, जो पहले ही राज्यसभा से पारित हो चुका है, उसे लोकसभा से भी पारित कराया जाना चाहिए।

27 वर्षों से लटका है विधेयक

महिला आरक्षण बिल पिछले 27 वर्षों से लटका हुआ है। इसे पहली बार 12 सितंबर 1996 को एचडी देवगौड़ा की सरकार ने पेश किया था। हालांकि, उस वक्त ये बिल पास नहीं हो सका था। इसके बाद भी तमाम सरकारों ने इसे कानून का रूप देने की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हो पाए। लोकसभा चुनाव के समय जो मतदाता सूची जारी हुई थी, उसमें महिला वोटरों की संख्या 43.2 करोड़ थी, जबकि 46.8 करोड़ पुरुष मतदाता थे। 17 वीं लोकसभा में देश भर से 78 महिला सांसद जीत कर संसद में पहुंची थी। संसद में महिलाओं की उपस्थिति 14.36 प्रतिशत है।

महिला आरक्षण बिल -2023

मोदी सरकार की इस ऐतिहासिक पहल का बॉलीवुड की अभिनेत्री कंगना रनौत , ईशा गुप्ता , सपना चौधरी भी नई संसद में इस अहम् पल का हिस्सा बनी। प्रधानमत्री नरेदर मोदी ने पुरानी संसद के ऐतिहासिक दिनों को याद किया। उनका भाषण एक बहुत ही सुलझा हुआ भाषण रहा जिसकी विपक्ष ने भी सरहाना की।

संजीव शर्मा
एडिटर इन चीफ

 

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