ई डी डायरेक्टर संजय कुमार मिश्रा का जाना तय -सुप्रीम कोर्ट
डिजायर न्यूज़ नई दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट समय समय पर कानून के कैसे जिन्दा रखा जाये ऐसे फैसले देती रहती है कुछ समय पहले ही चुनाव आयोग पर जो सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय लिया वो अपने आप में ऐतिहासिक था। और अब देश की सर्वोच्च एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय के प्रमुख संजय कुमार मिश्रा को एक करारा झटका दे कर सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। केंद्र सरकार ने सबसे पहले 2020 में संजय कुमार मिश्रा को एक साल का सेवा विस्तार दिया था। तब उन्हें 18 नवंबर, 2021 तक एक साल के लिए उनका कार्यकाल बढ़ाया गया था। फिर 2021 में कार्यकाल समाप्त होने से एक दिन पहले ही उन्हें दोबारा सेवा विस्तार कर ई डी का हेड बना दिया गया। ये दूसरी बार था। वहीं, 17 नवंबर 2022 को संजय कुमार मिश्रा का दूसरा सेवा विस्तार खत्म होने से पहले ही कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने एक वर्ष 18 नवंबर 2022 से 18 नवंबर 2023 तक के लिए तीसरे सेवा विस्तार को मंजूरी दे दी थी।
आज सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार को करारा झटका लगा है। शीर्ष कोर्ट ने ईडी निदेशक संजय कुमार मिश्रा के कार्यकाल विस्तार को अवैध ठहरा दिया है। शीर्ष अदालत ने उन्हें अपने लंबित काम निपटाने के लिए 31 जुलाई 2023 तक का समय दिया है। साथ ही न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने ईडी निदेशक के कार्यकाल को अधिकतम पांच साल तक बढ़ाने के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम में संशोधन की बात कही है। अदालत ने कहा है कि सरकार कानून बनाकर कार्यकाल में विस्तार कर सकती है, लेकिन अध्यादेश लाकर ऐसा करना वैध नहीं है।
कौन है संजय कुमार मिश्रा
गौरतलब है कि संजय कुमार मिश्रा को नवंबर 2018 में प्रवर्तन निदेशालय के पूर्णकालिक प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था। संजय मिश्रा 1984-बैच के भारतीय राजस्व सेवा आईआरएस आयकर कैडर के अधिकारी हैं। उन्हें पहले जांच एजेंसी में प्रमुख विशेष निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था। ईडी में नियुक्ति से पहले संजय मिश्रा दिल्ली में आयकर विभाग के मुख्य आयुक्त के रूप में कार्यरत थे।गौरतलब है कि सरकार पिछले साल एक अध्यादेश लेकर आई थी, जिसमें यह अनुमति दी गई थी कि ईडी और सीबीआई के निदेशकों का कार्यकाल दो साल की अनिवार्य अवधि के बाद तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है।
संजय मिश्रा के सेवा विस्तार को दी गई थी चुनौती
प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक के कार्यकाल के विस्तार को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाएं दाखिल की गई थीं। इनमें उनके सेवा विस्तार को अवैध ठहराया गया था। डॉ जया ठाकुर इस में याचिका करता थी और यूनियन ऑफ इंडिया इस में रेस्पोंडेंट थी। इस में कई याचिकाएं थी , रिट नंबर 1271 /2021 , 1274 /2021 , 1272 /2021 , 1307 /2021 , 1330 /2021 , 14 /2022 , 274 /2022 , 786 /2022 ओर एम ए नंबर 1765 /2022 और रिट पटीशन सिविल नंबर 1374 /2020 और रिट पटीशन सिविल ११०६/2022 इन सभी का आज निस्तारण कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकर्ता की तरफ से के वी विश्वनाथन , अनूप जी चौधरी। गोपाल शंकरनारायण , अभिषेक मनु संघवी , , प्रशांत भूषण सीनियर अधिवक्ता जैसे कई अधिवक्ताओ को सुना और सरकार की तरफ से तुषार मेहता और एस वी राजू थे।
पिछली सुनवाई को शीर्ष कोर्ट ने फैसला रखा था सुरक्षित
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने आठ मई को प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक के कार्यकाल के विस्तार को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। जस्टिस बीआर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। और आज 103 पेज का आर्डर सुनाया है।सरकार की सभी दलीलों को ख़ारिज करते हुए , आठ मई की सुनवाई से पहले सुप्रीम कोर्ट ने ईडी निदेशक संजय कुमार मिश्रा को दिए तीसरे सेवा विस्तार पर केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या वह इतने जरूरी हैं कि सुप्रीम कोर्ट के मना करने के बावजूद उनका कार्यकाल बढ़ाया जा रहा है। शीर्ष अदालत ने पूछा था क्या कोई व्यक्ति इतना जरूरी हो सकता है। शीर्ष अदालत ने 2021 के अपने फैसले में स्पष्ट किया था कि सेवानिवृत्ति की उम्र के बाद प्रवर्तन निदेशक के पद पर रहने वाले अधिकारियों का कोई भी सेवा विस्तार कम अवधि का होना चाहिए। यह भी स्पष्ट किया था कि संजय मिश्रा को आगे कोई विस्तार नहीं दिया जाएगा। पर सरकार ने उन्हे तीसरी बार भी सेवा विस्तार की मंजूरी दे दी। जिसपर कोर्ट नाराज़ दिखी।
तुषार मेहता की सभी दलील खारिज
जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि मिश्रा का विस्तार प्रशासनिक कारणों से आवश्यक था और वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) के भारत के मूल्यांकन के लिए महत्वपूर्ण था। इस पर पीठ ने सवालों की झड़ी लगाते हुए पूछा था कि क्या ईडी में कोई दूसरा व्यक्ति नहीं है जो उनका काम कर सके? क्या एक व्यक्ति इतना जरूरी हो सकता है? आप के मुताबिक ईडी में कोई और सक्षम व्यक्ति है ही नहीं ? 2023 नवबर के बाद इस पद का क्या होगा जब मिश्रा सेवानिवृत्त हो जाएंगे? और सब से बड़ी बात है की जो सीनियर इस पद पर पहुंचने के काबिल है वो श्याद अब तक सेवा निर्वित हो भी चुके होंगे।
केंद्र का तर्क, भारत की रेटिंग नीचे न जाए इसलिए जरूरी
तुषार मेहता ने कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग पर भारत के कानून की अगली सहकर्मी समीक्षा 2023 में होनी है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि भारत की रेटिंग नीचे नहीं जाए, प्रवर्तन निदेशालय में नेतृत्व की निरंतरता महत्वपूर्ण है। मिश्रा लगातार कार्यबल से बात कर रहे हैं और इस काम के लिए वह सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं। कोई भी बेहद जरूरी नहीं है लेकिन ऐसे मामलों में निरंतरता जरूरी है।
ये कोई नया मामला नहीं है अभी भी उत्तर प्रदेश हरियाणा जैसे राज्य डी जी पी भी नियुक्त नहीं कर पा रहे है। सत्ताधारी सरकार अहम् पदों पर उनको लाकर बैठाती है जी उसके लिए काम करे। आज ई डी और सीबीआई एक महत्वपूर्ण संस्थाएं है , इनका उपयोग और दुरुपयोग दोनों ही सरकार के हाथ में होते है। कहने को तो ये संस्थाए निष्पक्ष है पर सच्चाई कुछ और ही है , जिसे नकारा नहीं जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने आज भले ही संजय कुमार मिश्रा के नियुक्ति को असावधानिक करार दिया हो लेकिन उस समय में जो निर्णय लिए गए उनका क्या होगा ? और जिन लोगो को ये पद नहीं मिला और वो सेवा निर्वित हो गए उनका क्या होगा ? एक आफिसर को यहाँ तक पहुंचने में सालो लग जाते है ,क़ाबलियत होने के बाद भी वो बिना सरकार की मर्ज़ी उस पद पर नहीं पहुंच पाता।
एडिटर इन चीफ